पथ के साथी

Saturday, February 5, 2022

1184-भूल न जाना

 शशि पाधा

 

सुना है पूरब देस कहीं पर

तेरा है अब ठौर-ठिकाना

सुनियो रे ऋतुराज! कहीं फिर

पश्चिम नगरी भूल न जाना।

 

सात समन्दर पार देस में

दूर बसा है मेरा गाँव

बादल से तुम पता पूछना

वो तो जाने मेरा ठाँव

 

जंगल. पर्वत रोकेंगे पर

सूरज के संग चलते रहना

दिया वचन फिर भूल न जाना ।

 

केसर कलियाँ भरो जो झोली

पुरवा बाँध के लाना संग

मिट्टी की वो सौंधी खुशबू

पुड़िया में होली के रंग

 

 पीहर की गलियों से मेरी

 माँ  की मीठी यादें लाना

  सौगंध तुम्हें कुछ भूल न जाना ।

 

तुझसे ही सब उत्सव मेले

तुझसे ही कोकिल के गीत

ओढूँगी जब पीत चुनरिया

अधर सजें वासन्ती गीत

 

द्वार खड़ी मैं बाट जोहती

चिर प्रीति की रीत निभाना

राह-डगर फिर भूल न जाना ।

-0-

16 comments:

  1. वाह,बहुत मधुर गीत।बधाई

    ReplyDelete
  2. बसंती हवा की ख़ुशबू बिखेरती बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। हार्दिक बधाई शशि पाधा जी।

    ReplyDelete
  3. वसंत की सुगंध भरा सृजन।हार्दिक बधाई।-
    -परमजीत कौर रीत

    ReplyDelete
  4. सुन्दर प्यारी रचना
    हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  5. वाह!बहुत सुन्दर रचना।हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  7. सुंदर रचना। बधाई शशि जी!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर...बहुत बधाई

    ReplyDelete
  9. मेरी रचना को सहज साहित्य में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भैया का आभार | धन्यवाद सभी स्नेही मित्रों का जिन्होंने इसे सराहा |

    ReplyDelete
  10. बहुत मधुर गीत. मन में बसन्ती रंग समा गई. बधाई शशि जी.

    ReplyDelete
  11. शशि जी बसंती मौसम का बहुत मधुर गीत । हार्दिक बधाई लें ।

    ReplyDelete