शशि पाधा
सुना है पूरब देस कहीं पर
तेरा है अब ठौर-ठिकाना
सुनियो रे ऋतुराज! कहीं फिर
पश्चिम नगरी भूल न जाना।
सात समन्दर पार देस में
दूर बसा है मेरा गाँव
बादल से तुम पता पूछना
वो तो जाने मेरा ठाँव
जंगल. पर्वत रोकेंगे पर
सूरज के संग चलते रहना
दिया वचन फिर भूल न जाना ।
केसर कलियाँ भरो जो झोली
पुरवा बाँध के लाना संग
मिट्टी की वो सौंधी खुशबू
पुड़िया में होली के रंग
पीहर
की गलियों से मेरी
माँ की मीठी यादें लाना
सौगंध तुम्हें कुछ भूल न जाना ।
तुझसे ही सब उत्सव मेले
तुझसे ही कोकिल के गीत
ओढूँगी जब पीत चुनरिया
अधर सजें वासन्ती गीत
द्वार खड़ी मैं बाट जोहती
चिर प्रीति की रीत निभाना
राह-डगर फिर भूल न जाना ।
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वाह,बहुत मधुर गीत।बधाई
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Deleteबसंती हवा की ख़ुशबू बिखेरती बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। हार्दिक बधाई शशि पाधा जी।
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Deleteवसंत की सुगंध भरा सृजन।हार्दिक बधाई।-
ReplyDelete-परमजीत कौर रीत
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Deleteसुन्दर प्यारी रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
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Deleteवाह!बहुत सुन्दर रचना।हार्दिक बधाई।
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Deleteबहुत सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।
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Deleteसुंदर रचना। बधाई शशि जी!
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Deletegood poem
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...बहुत बधाई
ReplyDeleteमेरी रचना को सहज साहित्य में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भैया का आभार | धन्यवाद सभी स्नेही मित्रों का जिन्होंने इसे सराहा |
ReplyDeleteबहुत मधुर गीत. मन में बसन्ती रंग समा गई. बधाई शशि जी.
ReplyDeleteशशि जी बसंती मौसम का बहुत मधुर गीत । हार्दिक बधाई लें ।
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