प्रीति अग्रवाल
1.
सोचती हूँ,
इतने बरसों तक,
तुमने मेरी मुस्कुराती छवि को
अपने हृदय में
कैसे सम्भाल कर रखा होगा...
इतने बरसों में,
मैं तो खुद को ही
न जाने, कहाँ
रखकर भूल गई... !
2.
लगता है, कल रात
तुम फिर रोई थी...
तुम्हें कैसे पता...
सुबह उठा, तो
मेरे कुर्ते का बायाँ कँधा
कुछ सीला-सा था...
हाँ, मैं उसी तरफ
सोती थी!
3.
बिखरते हैं,
समेटती हूँ...
फिर बिखरते है,
फिर समेटती हूँ...
रोज़ इतनी मेहनत
क्यों करती हूँ?
सपने हैं,
ऐसे कैसे छोड़ दूँ!
4.
कई बार
राह पलटकर देख ली,
कुछ दुखते हुए पल
रूबरू हो ही जाते हैं...
ये,
हम दोनों की
पुरानी आदत है।
5.
जाने क्यों
हर वक्त
कारण ढूँढते हैं,
पहले भी तो
बेवक्त,
बेबात,
बेहिसाब
हँसा करते थे...!
6.
मैं कहती रही
तुमने सुना ही नहीं,
कहने सुनने को अब
कुछ रहा ही नहीं...
7.
कभी मौक़ा,
तो कभी अल्फ़ाज़,
ढूँढती रह गई...
मेरे दिल की
मेरे
दिल में ही रह गई।
8.
मुसाफिरी की हमको
है आदत पड़ी...
हर वक्त पुकारे
है मंज़िल नई!
9.
अल्हड़ नदी
राह पथरीली,
छिलती
दुखती
किसी से
कुछ न कहती,
मीठी की मीठी...
कुछ कुछ,
मुझ सी... !
10.
राहें,
दोराहे,
चौराहे बनी
राहगीर बँटते गए...
ज़िन्दगी चलती रही...!
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ, मन प्रसन्न हो गया, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण क्षणिकाएं, हार्दिक बधाई।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
बहुत ही प्यारी क्षणिकाएँ .....सभी भावपूर्ण एवं सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक बधाई प्रीति जी
सुंदर
ReplyDeleteपत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय भाई साहब का बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteआदरणीय भीकम सिंह जी, रीत जी, पूर्वा जी, अनिता जी आपका प्रोत्साहन मेरी लेखनी को पंख देता है, हार्दिक आभार!
प्रेम की स्मृतियों से पगी भावुक हृदय की सहज अभिव्यक्ति है प्रीति जी की क्षणिकाओं में,प्रत्येक क्षणिका मन पर प्रभाव छोड़ती है।बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteभावपूर्ण क्षणिकाएँ!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ बहुत भावपूर्ण, बधाई प्रीति जी.
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ भावपूर्ण। बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण क्षणिकाएँ। बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteसुदर्शन दी, सुरँगमा जी, जेन्नी जी, उमेश जी, शिवजी भैया, आप सब की प्रोत्साहित करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार!
ReplyDeleteउम्दा भावपूर्ण क्षणिकाएँ...बहुत-बहुत बधाई प्रीति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...बहुत बधाई
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