पथ के साथी

Sunday, January 24, 2021

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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

बीज जितने भी बिखेरे वे सभी मधुबन में खिले।

यार जितने भी बनाए, दुश्मनों के घर में मिले

2

वश नहीं तेरा कि मेरा,हम क्यों मिले इस मोड़ पर

जानता इसको विधाता,क्या कुछ चले हम छोड़कर

3

कुछ अपनों ने तो मुझको इतना प्यार दिया

सौ- सौ जनम मिलें तो कर्ज़ उतारूँ कैसे ।

कुछ ने अपने बनकर इतने थे वार किए

सौ-सौ मरण मरूँ मैं उन्हें बिसारूँ कैसे

4

सब काँटे कुछ ने मेरे पथ के चुन डाले

सब पोर -पोर हाथों के लहूलुहान किए ।

कुछ ने अपने बनकर हज़ारों प्रहार किए

नासूर हमें देकर पूरे अरमान किए ।

लोगों की क्या बातें, लोग दगा देते हैं।

अपने बनकर घर में ,आग लगा देते हैं।

मुक्तक

शान से आगे बढ़ो तुमकल तुम्हारा है

तुम तो मेरी जाह्नवी हो, मुझमें जल तुम्हारा है।

पथ तुम्हारा कंटकों का,संग में ही चलना मुझे

सुमन खिलाने हैं वहाँ तक जहाँ आँचल तुम्हारा है।

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15 comments:

  1. सुन्दर रचनाएँ! मर्मस्पर्शी !

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  2. अति सुंदर भावपूर्ण सृजन। बधाई

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  3. अति उत्तम। हार्दिक बधाई।

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  4. बेहद सुंदर। हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ गुरु जी।👌💐

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  6. भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय भाईसाहब जी।

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  7. सभी रचनाएँ बेहद सुन्दर आदरणीय।

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  8. मेरा उत्साहवर्धन करने वाले सभी साथियों का आभारी हूँ। अपनी यहीआत्मीयता बनाए रखिए

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  9. बहुत सुन्दर

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  10. सभी पंक्तियां बेहतरीन भाव लिए, आपको अनेकों बधाई आदरणीय!

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  11. बहुत सुन्दर व भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!

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  12. सुंदर एवं भावपूर्ण रचना बधाई।

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  13. बहुत सुंदर सृजन भैया, हार्दिक बधाई आपको 🙏💐🙏

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  14. अद्भुत भाव है. यूँ लगता है जैसे हमारी अनुभूति को भैया ने शब्द-भाव दिए हैं. बहुत उम्दा रचनाएँ. हार्दिक बधाई काम्बोज भैया.

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