पथ के साथी

Monday, July 6, 2020

1014-बनजारा जब लौटा घर को


बनजारा जब लौटा घर को
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बनजारा जब लौटा घर को
         बन्द उसे सब द्वारा  मिले ।
बदले-बदले से उसको सब
         जीवन के किरदार मिले ।
नींद अधूरी हिस्से आई
सबको बाँटे थे सपने
गैर किसी को कब माना था
माना था सबको अपने ।
इन अपनों से बनजारे को
         घाव बहुत हर बार मिले ।
भोर हुआ तो बाँट दुआएँ
चल देता है बनजारा
रात हुई तो फिर बस्ती में
रुक लेता है बनजारा ।
लादी तक देकर बदले में
         सिर्फ़ दर्द -धिक्कार मिले।
आँधी, पानी, तूफ़ानों में
कब बनजारा टिकता है
मन बावरा कभी ना जाने-
छल-प्रपंच भी बिकता है ।
ठोकर ही इस पार मिली है
         ठोकर ही उस पार मिले
-0-[ शीघ्र प्रकाश्य संग्रह से]

21 comments:

  1. आपके कविता संग्रह - बनजारा मन की हार्दिक शुभकामनाएँ , बधाई । इस संग्रह की केंद्रीय कविता जीवन के गूढ़ यथार्थ का चित्रण लिए प्रस्तुत हुई है । कहा जाता है कि आप इस संसार को जो दोगे वही आपको मिलेगा लेकिन हम ऐसा कहाँ पाते हैं ?

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  2. ‘बनजारा मन’ काव्य संग्रह के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।यह शाश्वत सत्य है कि जो सही मार्ग पर चल कर दुनिया में ख़ुशियाँ बाँटता है,उसकी राह में वही लोग काँटें बिखेरते हैं।बहुत सुंदर , मन को छू जाने वाली कविता ।

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  3. बहुत शुभकामनाएं भैया।

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  4. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है भाई साहब,नींद अधूरी हिस्से आई, बाँटे थे सबको सपने....बहुत सुंदर। कविता संग्रह 'बंजारा मन'के लिए बहुत बहुत बधाई आपको!

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय!

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    1. बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण कविता भैया जी 🙏🙏 नव सँग्रह हेतु बहुत - बहुत बधाई 💐💐💐

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  6. बहुत मार्मिक कविता भाई साहब,भावुक व्यक्ति सतत दूसरों के कल्याण में रत रहते हैं किंतु उन्हें सदा अपने कहने वाले ही छलते हैं,उन्हें पीड़ा देते हैं।स्वार्थी लोक की यही रीति है।आपकी लेखनी को नमन।बनजारा मन हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  7. अति भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई , शुभकामनाएं आदरणीय भाईसाहब जी।

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  8. हृदयस्पर्शी कविता ।आगामी काव्य संग्रह के लिए अग्रिम बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ भैया जी ।

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  9. भाई काम्बोज जी कविता संग्रह 'बंजारा मन' के लिए बधाई |सुन्दर भाव हैं नींद अधूरी हिस्से आई बांटे थे सबको सपने ...|

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  10. सारगर्भित रचना।
    मेरी ओर से बधाई।

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  11. बनजारा मन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.... आशा करते हैं कि शीघ्र ही पूरा संग्रह पढ़ने को मिलेगा ।
    बदले-बदले से उसको सब / जीवन के किरदार मिले ।/ नींद अधूरी हिस्से आई /सबको बाँटे थे सपने..
    ठोकर ही इस पार मिली है / ठोकर ही उस पार मिले... फिर भी "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" का अनुसरण करते हुए बनजारा कर्म करता जाता है ....
    बहुत सुंदर रचना ... हार्दिक शुभकामनाएँ

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  12. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  13. मेरा लेखन आप जैसे सुहृदयजन की प्रेरणा का प्रतिफलन है्। आप सबका अनुगृहीत हूँ। रामेश्वर काम्बोज

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  14. ’बनजारा मन’ काव्य संग्रह के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएँ।
    बहुत र्ममस्पर्शी रचना। जीवन के सत्य का बेहतरीन चित्रण... बहुत- बहुत बधाई।

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  15. बहुत सुन्दर

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  16. आपके आगामी काव्य संग्रह "बनजारा मन" की लिए हार्दिक शुभकामनाएं सर...
    जीवन में अक्सर यही होता है कि जिन्हें हम सबसे अधिक अपना समझते हैं उनसे दर्द ही पाते हैं... पर कुछ लोग पेड़ की तरह होते हैं जिन्हें बार बार तोड़ा और काटा जाए तब भी बदले में फूल और फल ही देते हैं... आप भी उनमें से हैं जो पीड़ा सहकर भी सबका हिट ही करते हैं।

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  17. हृदयस्पर्शी सृजन ! एक आहत मन की व्यथा आज कौन समझता है?? वाह नमन आदरणीय सर

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  18. आप सभी का आभार -काम्बोज

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  19. 'बनजारा मन' के लिए भाई काम्बोज भाई को बहुत बहुत बधाई. अनुभवों को मथकर निकलने वाले भाव आपकी लेखनी की विशेषता होती है. इस रचना में जीवन की कड़वी सच्चाई है जिसका सामना कभी न कभी हम सब करते हैं. बहुत प्रभावपूर्ण रचना है. पुस्तक का इंतज़ार है. हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  20. अति सुन्दर अभिव्यक्ति...आपके आगामी काव्य संग्रह "बनजारा मन" के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ भैया जी! !

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