1-शशि पुरवार
1
कुल्लड़ वाली चाय की, सोंधी-सोंधी गंध
और इलाइची साथ में, पीने का आनंद
2
बाँचे पाती प्रेम की, दिल में है तूफान
नेह निमंत्रण चाय का, महक रहे अरमान
3
गप्पों का बाज़ार है ,मित्र मंडली संग
चाय पकौड़े के बिना, फीके सारे रंग
4
मौसम सैलानी हुए , रोज़ बदलते गाँव
बस्ती बस्ती चाय की, टपरी वाली छाँव
5
घर- घर से उड़ने लगी, सुबह चाय की गंध
उठो सवेरे काम पर, जीने की सौगंध
6
चाहे महलों की सुबह, या गरीब की शाम
सबके घर हँसकर मिली, चाय नहीं बदनाम
7
थक कर सुस्ताते पथिक, या बैठे मजदूर
हलक उतारी चाय ही, तंद्रा करती दूर
8
कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर
नुक्कड़ पर मचने लगा, गर्म चाय का शोर
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2- चाहत
सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
भरोसा जो टूटा था
जोड़ रही वर्षों से....
बोलियाँ खामोश हैं
कितने ही अरसों से ...
दस्तक भी गुम है अब
बारिश के शोर में ....
अधूरे जो वादे थे
दब गए संदूकों में ...
नफरतें धो रही
प्रेम रस के साबुन से ...
चट्टानें जो तिड़क गयीं
भर ना पाई परिश्रम से ...
उड़ गई जो धूल बन
ला ना पाई उम्र वही ...
नीर- जो सूख गया
लौटा ना सकी सरोवर में ...
अक्षर जो मिट गए
लिख ना पाई फिर उन्हें ...
पुष्प जो मुरझा गए
खिल ना सके बगिया में ...
पत्ते जो उड़ गये
लगे ना दरख्तों पर ...
बर्फ़ जो पिघल गयी
जम ना सकी फिर कभी ...
अगम्य राहें बना ना पाई
सुगम सी डगर कभी ...
निरर्थक यूँ जीवन रहा
हुआ ना सार्थक कभी ....
फिर भी एक आस है
बढ़ने की चाह है ....
हौसले बुलंद हैं ...
चाहतें भी संग हैं ....
email: savita51@yahoo.com
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बहुत प्यारी रचनाएँ... शशिजी एवँ सविता जी को हार्दिक बधाई !
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