1-समय
कृष्णा वर्मा
समय बड़ा बलवान रे भैया
किसको दें इल्ज़ाम रे भैया
सतरंगी सपने थे पाले
वक़्त कर गया पल में काले
सींचा जिन्हें अमी देकरके
वही दे गए दिल पे छाले।
आँखों में आँसू के धारे
वही दे गए जो थे प्यारे
उनको कुछ अहसास नहीं
झाग हुए हम पी-पी खारे।
दुख की लम्बी साँझ दे गए
हाथ ग़मों की झाँझ दे गए
ऐसी पीड़ा शूल दे गए
ख़्वाब सभी निर्मूल हो गए।
हाथों से पतवार खो गई
नैया भी मझधार हो गई
कौन सुने अब किसे पुकारें
रह गए कितने दूर किनारे
पता न हम बेहोश थे भैया
या किस्मत का दोष था भैया
दिल में बचा मलाल रे भैया
समय बड़ा बलवान रे भैया।
-0-
2-अनिता ललित
पराए देश,
जो लगे अकेला
लाज़िम ही है!
अपनों में रहके भी
जो अकेलापन झेले –उसका क्या?
क्यों होता ऐसा -जिसका नाम
आपकी साँसें, हर पल गुने,
उसके लिए –आपका होना ...
बस! होना है!
दाल, चावल, रोटी –
ज्यों खाना ही है!
क्या चाहिए इस दिल को?
क्यों है इतना भारी –
जब है ख़ाली-ख़ाली!
क्यों इतनी अपेक्षाएँ?
जो दुःख पहुँचाती ख़ुद को?
ख़यालों का जंगल, सवालों के तूफ़ान, चु
भते काँटों -सी बातें –
ये कैसी बेचैन शख़्सियत है?
कहाँ गया वो सुकूँ का ख़ज़ाना?
यह कैसी दहशत सवार है मन में?
ये डर –खो देने का!
बार-बार खोने के बाद, फिर से खो देने का?
अपना था क्या, जिसे पा लेने की ज़िद है?
साथ लाये थे क्या, जिसे बाँधने का जुनूँ है?
सभी रिश्ते-नाते, ज़ेवर की तरह –
कुछ वक़्त तन-संग सजें,
फिर कुछ सिमटें, कुछ टूटें,
कुछ बोझ की तरह छूटें!
अपना साथ, ख़ुद अपने सिवा -
किसी ने कभी, निभाया है क्या?
-0-
ग़मों की झाँझ -अच्छा लगा यह प्रयोग।
ReplyDeleteलयपूर्ण रचना की बधाई कृष्णा जी
क्या चाहिए इस दिल को?
ReplyDeleteक्यों है इतना भारी –
जब है ख़ाली-ख़ाली!
मन से बातें करती मन की कविता बहुत अच्छी लगी। ये ख़ाली सी अनुभूति शायद हर दिल का सामान है आजकल। बहुत बधाई अनिता जी।
भावपूर्ण कविता ।अपनों के बीच रह कर अकेलापन सहना आज की त्रासदी है।बहुत सुंदर कविता ।बधाई अनिता
ReplyDeleteसमय बड़ा बलवान के भैया। समय कितने रंग बदलता है। बहुत सुंदर भाव ।मनमोहक कविता ।बधाई कृष्णा वर्मा जी।
ReplyDeleteकृष्णा जी की समय के बदलते रंगों पर और और अनिता जी की बहुत दार्शनिक कविता पढ़कर मन प्रफुल्लित हुआ आप दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसुंदर रचना
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ReplyDeleteअकेलेपन की त्रासदी और रिश्तों की निरर्थकता को स्वर देती अनिता ललित जी की कविता तथा समय के निर्मम चक्र द्वारा दिये जा रहे दुःखों की पीड़ा को रेखांकित करती कृष्णा जी की कविता..दोनो ही वेदना की अभिव्यक्ति की सहज कविताएँ हैं।दोनो को बधाई।
ReplyDelete26 August, 2020 11:52
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ReplyDeleteअपना साथ, ख़ुद अपने सिवा -
ReplyDeleteकिसी ने कभी, निभाया है क्या?
.... सहज सरल शब्दों के साथ एक सटीक प्रश्नचिन्ह लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति।
उत्कृष्ट लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं
अपने सवालों के ज़वाब ख़ुद ही देती आप दोनों की सटीक सुंदर कविताएं💯🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ ।भाव व अभिव्यक्ति दोनों ही प्रभावशाली ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ ।
भावपूर्ण एवं सहज अभिव्यक्ति । रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteकृष्णा वर्मा जी की रचना में समय बड़ा बलवान है एवं अनिता ललित जी ने दिल की इच्छाओं को उकेरा है ।
ReplyDeleteसहज सुंदर कविताएँ -आप दोनों को बधाई ।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत ही भावपूर्ण
ReplyDeleteकृष्णा जी एवं अनिता जी को हार्दिक बधाइयाँ
वाह!बेहद सुंदर अभिव्यक्ति, कृष्णा जी और अनिता जी, आप दोनों को बधाई!!
ReplyDeleteसर्वप्रथम मेरी कविता को यहाँ स्थान देने हेतु आदरणीय भैया जी का बहुत-बहुत आभार!
ReplyDeleteआ. कृष्णा दीदी ... सचमुच! समय बड़ा बलवान है, सबका हिसाब-किताब यहीं चुकता करेगा! भावपूर्ण एवं प्रभावशाली कविता हेतु बहुत बधाई आपको!
आप सभी स्नेहीजनों की सराहना एवं उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से आभार!
~सादर
अनिता ललित
आदरणीय भाई काम्बोज जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteभावपूर्ण सृजन के लिए अनिता जी को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत सुंदर एवँ भावपूर्ण !
आद.कृष्णा दी एवँ प्रिय सखी अनिता जी को हार्दिक बधाई !!
बेहद सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआदरणीया कृष्णा दीदी, अनिता दीदी को हार्दिक शुभकामनाएं!
सादर!