पथ के साथी

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Saturday, August 22, 2020

1024

 1-शशि पुरवार  

 1

कुल्लड़ वाली चाय कीसोंधी-सोंधी गंध

और इलाइची साथ मेंपीने का आनंद

2

बाँचे पाती प्रेम कीदिल में है तूफान

नेह निमंत्रण चाय कामहक रहे अरमान

3

गप्पों का बाज़ार है ,मित्र मंडली संग

चाय पकौड़े के बिनाफीके सारे रंग

4

मौसम सैलानी हुए रोज़ बदलते गाँव

बस्ती बस्ती चाय कीटपरी वाली  छाँ

5

घर- घर से उड़ने लगीसुबह चाय की गंध

उठो सवेरे काम परजीने की सौगंध

6

चाहे महलों की सुबहया गरीब की शाम

सबके घर हँसकर मिलीचाय नहीं बदनाम

7

थक कर सुस्ताते पथिकया बैठे मजदूर

हलक उतारी चाय हीतंद्रा करती दूर

8

कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर

नुक्कड़ पर मचने लगागर्म चाय का शोर

-0-

2- चाहत

सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)

 भरोसा जो टूटा था

जोड़ रही वर्षों से....

बोलियाँ खामोश हैं

कितने ही अरसों से ...

दस्तक भी गुम है अब

बारिश के शोर में ....

अधूरे जो वादे थे

दब गए संदूकों में ...

नफरतें धो रही

प्रेम रस के साबुन से ...

चट्टानें जो तिड़क गयीं

भर ना पाई परिश्रम से ...

उड़ गई जो धूल बन

ला ना पाई उम्र वही ...

नीर- जो सूख गया

लौटा ना सकी सरोवर में ...

अक्षर जो मिट गए

लिख ना पाई फिर उन्हें ...

पुष्प जो मुरझा गए

खिल ना सके बगिया में ...

पत्ते जो उड़ गये

लगे ना दरख्तों पर ...

बर्फ़ जो पिघल गयी 

जम ना सकी फिर कभी ...

अगम्य राहें बना ना पाई

सुगम सी डगर कभी ...

निरर्थक यूँ जीवन रहा

हुआ ना सार्थक कभी ....

फिर भी एक आस है 

बढ़ने की चाह है ....

हौसले बुलंद हैं ...

चाहतें भी संग हैं ....

  email: savita51@yahoo.com

--0-         

 

Thursday, January 23, 2020

948


1-डॉ.पूर्णिमा राय

1
सहज भाव से सुख मिले,कब मनमाना रोज
बाहर काहे  ढूँढता ,भीतर ही सुख खोज।।
2
रिश्ते महकें फूल -से ,दिल में हो जब प्यार।
चंदन सी खुशबू मिले ,दूर अगर तकरार।।
3
भाई तेरे प्यार पर ,सौ जीवन कुर्बान।
माथे करती तिलक हूँ, पूरे हों अरमान।।
4
उजली-उजली धूप का, छू रहा एहसास
शीत लहर का आगमन ,प्रेम भरा विश्वास।।
5
नफ़रत की दीवार से,कैसे होगा पार।
पास नहीं जब प्रेम की, दौलत अपरंपार।।
-0-डॉ. पूर्णिमा राय, पंजाब
ईमेल :
drpurnima01.dpr@gmail.com
-0-
2-मंजूषा मन
1.
मोती जग को बाँटती, नन्ही -सी इक सीप।
उजियारे का मोल भी, नहीं माँगता दीप।।
2.
सारा जग हर्षा रहा, कलियों का यह नूर। 
पवन सुवासित कर रही, सुख देतीं भरपूर।।
3.
तृण-तृण पल-पल में रहें, मन में बसते राम।
पावन सब संसार से, राम तुम्हारा धाम।।
4.
सूरज कोने में छुपा, बैठा होकर शाँत।
सकल जीव ठिठुरे फिरें, सबके मन हैं क्लांत।।
5.
हिम कण बन गिरने लगी, हाड़ जमाती शीत।
शीतल तरल बयार भी, गाए ठिठुरे गीत।।
6.
सूरज कोने में छुपा, बैठा होकर शाँत।
सकल जीव ठिठुरे फिरें, सबके मन हैं क्लांत।।
-0-
3-सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
1
आसमान है सज रहा, तारों की बारात ।
पवन मगन हो नाचता, लहरें देतीं साथ ।।
मानव -जीवन बुलबुला, चार दिनों का खेल ।
बात प्रेम की बोलिए, कर लो सबसे मेल ।।
3
 धर्म- दया सबसे बड़े , कर सबका उपकार ।
गा न दुःख कभी,  नाव लगेगी पार ।।
4
पंख लगा कर प्रेम के, ऊँची  भरो उड़ान ।
वैर- द्वेष न संग धरो, होगा तेरा मान ।।
5
लेकर कुंजी प्यार की, खोलो मन के द्वार ।
साफ़ करो सब मैल को, करो दिल से बाहर ।। 
 सरिता देती ही रही, चलने की ही सीख ।
 पालन इसका जो करे,  माँगे ना वो भीख ।।
7
राम नाम मुख से कहें, फिर भी करते घात ।
मंदिर गिरिजा बैठके , चुगली करते साथ ।।
8
कल -कल पानी बह रहा ,झरने करते शोर ।
सावन की बरसात में , बगिया  नाचे मोर ।।
9
डगमग करती नाव भी ,पार लगाती छोर ।
नाविक बैठा देखता , सुख से तट की  र ।।
  -0- ईमेल : savita51@yahoo.com

4-शशि पुरवार 
1
तन को सहलाने लगी, मदमाती- सी धूप
सरदी हंटर मारती,हवा फटकती सूप 
2
दिन सर्दी के आ गए, तन को भा धूप
केसर चंदन लेप से, ख़ूब निखरता रूप  
3
पीले पत्रक दे रहे, शाखों को पैगाम
समय चक्र थमता नहीं, चलते रहना काम
4
रोज कहानी में मिला , एक नया किरदार
सुध -बुध बिसरी जिंदगी, खोजे अंतिम द्वार
5
क्या जग में तेरा बता ,आया खाली हाथ
साँसो की यह डोर भी, छोडे तन का साथ 
6
तन्हाई की कोठरी , यादें तीर कमान
भ्रमण करे मन काल का, जादुई विज्ञान 
7
जीवन के हर मोड पर, उमर लिखे अध्याय
अनुभव के सब खुश रंग, जीने का पर्याय 
8
जहर हवा में घुल गया, संकट में है जान
कहीं मूसलाधार है, मौसम बेईमान   
9
तेवर तीखे हो गए, अलग अलग प्रस्ताव
गलियारे भी गर्म हैं, सत्ता के टकराव
 10
रोज समय की गोद में, तन करता श्रम दान
मन ने गठरी बाँध ली, अनुभव के परिधान
11
नजरों से होने लगा, भावों का इजहार 
भूले -बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार  
12
तनहाई डसने लगी, खाली पड़ा मकान
बूढी साँसें ढूँढती , जीने का सामान
-0-
       
                                          

Sunday, February 18, 2018

800


शशि पुरवार
रात
1
 चाँदी की थाली सजी,  तारों की सौगात
 अंबर से मिलने लगी, प्रीत सहेली रात। 
2
रात सुरमई मनचलीतारों लिखी किताब 
चंदा को तकते रहे, नैना भये गुलाब।
3
आँचल में गोटे जड़े, तारों की बारात
अंबर से चाँदी झरी, रात बनी परिजात। 
4
रात शबनमी झर रही, शीतल चली बयार 
चंदा उतरा झील में, मन कोमल कचनार। 
 
कल्पवृक्ष वन वाटिका, महका हरसिंगार 
वन में बिखरी चाँदनीरात करें श्रृंगार।
6
नैनों के दालान में, यादों हैं जजमान
गुलमोहर दिल में खिले, अधरों पर मुस्कान
7
रात चाँदनी मदभरी, तारें हैं जजमान
नैनों की चौपाल में, यादें हैं महमान।
8
आँखों में निंदिया नहीं, सपने कुछ वाचाल
यादें चादर बुन रहीं, खोल जिया का हाल 
9
एक अजनबी से लगे,  अंतर्मन जज्बात 
यादों की झप्पी मिली, मन, झरते परिजात 
10
सर्द हवा में ठिठुरते, भीगे से अहसास 
आँखों में निंदिया नहीं, यादों का मधुमास
11
बैचेनी दिल में हुई , मन भी हुआ उदास
काटे से दिन ना कटा, रात गयी वनवास
12
पल भर में ऐसे उड़े, मेरे होश-हवास
बदहवास- सा दिन खड़ा, बेकल रातें पास
13
संध्या के द्वारे खड़ी, कोमल कमसिन रात 
माथे पर चंदा सजा, चाँदी शोभित गात 
14
अच्छे दिन की आस में, बदल गए हालात
फुटपाथों पर सो रही, बदहवास की रात
-0-

Friday, March 27, 2015

प्रतीक्षा




1-डॉसुधेश


( पूर्व प्रोफ़ेसर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय)

कला: नवगीतकार रमेश गौतम
प्रतीक्षा

     पता नहीं कब यम का भेजा  हरकारा आएगा
     आख़िरी सफर की तैयारी की ख़बर सुनाएगा ।

सहसा बिना सूचना आए तो बेहतर
जैसे बाज़ झपट ले विवश कबूतर
अच्छा होगा झंझट से मुक्ति  मिले
      यह वक्त न ज़्यादा देर सताएगा ।

अफ़सोस यही जो करना चाहा कर न सका
जब जीना चाहा जी न सका मर्ज़ी से मर न सका
 गीतों के पंछी गगन में खो गये कहीं
      उन्हें फिर कैसे कविता प्रेमी दुहराएगा ।

पाला पड़ा कुछ छोटे-बड़े कमीनों से
उन्होंने छेदा शब्दों की संगीनों से
बडी पुरानी परम्परा है जग की
     जीते जी मारेगा मरने पर अश्रु बहाएगा ।
-0-
314 सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर 10 दिल्ली 110075
-0-
2-अमित अग्रवाल
 1-तब और आज...

दौड़ा करता था जिन रगों में 
सुर्ख़ खौलता लहू,
आज फ़कत सुरमई पानी
हिला सा करता है.

चमकती थी जो पेशानी
पसीने और हौसलों की गर्मी से,
आज पशेमाँ है
चन्द लकीरों के साथ.

धड़कता था जो दिल 
इतने ज़ोर से कि'वो' डर जाएँ,
आज सिर्फ़ ज़िन्दा रहने को
लरज़ा किया करता है.

मज़बूत जकड़ उन हाथों की
जो धकेल दे चट्टानों को परे,
आज बस कलम उठाने भर को
जुम्बिश लेती है.

बरसते थे जिन आँखों से
शोले-वहशत और ओस प्यार की,
आज मुर्दार,पथराई,वीरान
'सुनसान है टकटकी.

ज़हन जो हुआ करता था
उमंगों,हसरतों औ'ख्वाहिशों का तूफाँ,
आज ठंडा,वीराँ कब्रिस्ताँ
या उड़ते गुबारों का सहरा भर है.
-0-
        2-ज़बरदस्ती...

सँभाला बहुत, न माना, निबटना पड़ेगा 
अब  तो  सख्ती  से,
उदासी पोंछ  ही  डालो  यारो, जबरन,
मेरे दिल की तख्ती से.
-0-
3-शशि पुरवार
          1- हमने देखा

होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की
पी है हाला

ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म ,उनकी
आँखों में है पलते देखा

छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का
छलका प्याला 

रातो रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआएँ
भूल गया घर हमको सारा

छोटे के
लालन - पालन में
रंग -भरे सपनो की माला

बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन मांगे,बेटा सब पाये
बेटी मांगे, तब है लेखा

आशाओ का
गला घोटकर
अधरो, लगा लिया है ताला

2-रोजी -रोटी की खातिर

रोजी- रोटी की खातिर फि
चलने का दस्तूर निभाएँ
क्या छोड़े, क्या लेकर जाएँ
नयी दिशा में कदम बढ़ाएँ.

चिलक- चिलक करता है मन
बंजारों का नहीं संगमन
दो पल शीतल छाँव मिली, तो
तेज धूप का हुआ आगमन


चिंता -ज्वाला घेर रही है
किस कंबल से इसे बुझाएँ.

हेलमेल की बहती धारा
बना न कोई सेतु पुराना
नये नये टीले पर पंछी
नित करते है आना- जाना 

बंजारे कदमो से कह दो
बस्ती में अब दिल न लगाएँ।

क्या खोया है, क्या पाया है
समीकरण में उलझे रहते
जीवन बीजगणित का परचा
नितदिन प्रश्न बदलते रहते

अवरोधों  के सारे  कोष्टक
नियत समय पर खुलते जाएँ
-0-