कमला निखुर्पा
रंगों से खेले
बावरे ये बदरा।
कर सोलह शृंगार
झील में झाँक
निज बिम्ब- प्रतिबिम्ब
शरमाए है कोई।
रक्तिम क्यों कपोल
संध्या रानी के
कानों में कह गईं
कुछ तो पुरवैया ।
चहक चले
बादलों के संग
विहग वृन्द
भर ऊँची उड़ान
दूर क्षितिज तलक।
पाने को एक झलक
अँखियाँ ये मेरी
क्यों खुली की खुली
झपके न पलक ।
सरकता रहा
स्यामल पट
धीरे धीरे....
ओझल हुआ
गगन रंगमंच
फिर से रचेगी
संध्या रानी
कल नई नाटिका ।
संध्या रानी वाकई रोज एक नए रंग रूप में आती है, और सब को उसी में रंग लेती है, अति सुंदर चित्रण और अभिव्यक्ति, हमेशा की तरह। आपको बहुत बहुत बधाई कमला जी!!
ReplyDeleteरक्तिम क्यों कपोल
ReplyDeleteसंध्या रानी के
कानों में कह गईं
कुछ तो पुरवैया ।
सुंदर अभिव्यक्ति और मनोहारी चित्रण।उत्कृष्ट रचना।हार्दिक बधाई कमला जी।
गगन रंगमंच के क्या कहने
ReplyDeleteवाह
वाह!संध्या सुन्दरी का मनोहारी चित्रण ।हार्दिक बधाई कमला जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! 👌👌
ReplyDeleteफिर से रचेगी
ReplyDeleteसंध्या रानी
कल नई नाटिका ।....बहुत सुंदर,प्रकृति का स्वरूप नित नूतन ही होता है,वही शाम नित्य आती है पर हर दिन नए कलेवर में प्रतीत होती है,बस दृष्टि चाहिये....बहुत सुंदर बिम्बो से सजा संध्या का मानवीकरण।बधाई कमला जी।
प्रकृति का बहुत सुंदर चित्रण ..... मोहक बिम्ब
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ कमला जी
धन्यवाद आप सभी का । मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए । सहज साहित्य के मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद आदरणीय ।
ReplyDeleteसाँझ का दृश्य में बादल और झील के साथ सहज साहित्य का सुंदर सृजन मन को मोह गया । कमला निखुर्पा जी को बधाई ।
ReplyDeleteप्रकृति का मनमोहक चित्रण। कमला जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteकमला जी, आपकी कविता में संध्या के रंग मन में रंग घोल रहे हैं | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति !बधाई कमला जी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन....हार्दिक बधाई कमला जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर, कोमल एवं प्यारी रचना! हार्दिक बधाई कमला जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित