शैलेन्द्र
सिंह दूहन
न...
हम
नहीं,
तुम।
क्योंकि...
तुम्हारी
तो
एक
अनुपस्थिति भी
जहाँ-तहाँ
उपस्थित रहकर
बड़े-बड़े
आयोजन कर देती है
रॉकेट उड़ा देती है
युद्ध
करा देती है
समझौते
करा देती है।
सचमुच...
जाने
कितने-कितने गुणा बड़ी है
तुम्हारी
केवल एक अनुपस्थिति,
हम
करोड़ों की उपस्थिति से।
तुम
शान से चंद लम्हों में ही
सारा
विश्व घूम लेते हो
हम
सफेद छड़ी की उँगली पकड़
बैसाखी
ले
बंद
पहन
चल
भर पाते हैं, रेंगने जैसा।
तुम्हारे
बहुत
महँगे
कपड़ों पर
व्यस्तता
के तमगे लगे हैं।
हम
पहने हैं
बाप
-दादा
की उतरन
जिस
पे लगी है
गरीबी
और बेरोजगारी की थेगली।
दिशाओं
के कपाट बन्द करना
पुरवा
को पछवा करना
नदियों
की डगर बदलना
आदि-आदि,
तुम्हारे
बाएँ हाथ
के काम हैं।
सोचो,
दिव्यांग
तुम हो कि हम।
हमे
पता है
कि
तुम्हें पता है
परन्तु...
मसखरे
हो तुम।
तुम
तो इस से भी खतरनाक मसखरी कर सकते हो,
तुम
अंधों से आकाश में टंगे बादलों के रंग पूछ सकते हो
गूंगों
से गाना सुन सकते हो
बिन
पैरों के लोगों की दौड़ करवा सकते हो।
तुम्हारा
आत्म प्रशंसा में
अपने
लिए बुदबुदाया विशेषण है,
जिसे
चेप दिया है तुमने
हमारे
चेहरों पर।
बंद करो यह मसखरी
यह
अष्टावक्र को
सुगढ़
डील-डोल वाला कह
मुँह
चिढ़ाता व्यंग्य।
याद
रखना...
हमारे
चेहरे
चेहरे
हैं,
तुम्हारी
नेम प्लेट नहीं।
2-मुकेश बेनिवाल
रौशन किया तेरे विराने को
अब शिकवा है तुम्हें
उन बहारों से भी
लाँघकर समंदर यूँ
गुमान ना कर
खिसकती हैं कश्तियाँ अक्सर
किनारों से भी
-0-
प्रीति
अग्रवाल
हम भी
तारों से करते हैं बातें जनाब
हुई तेरी ही नींदों की चोरी नहीं है...।
हथेली पे यूँ तो, है लकीरें कईं
अधूरी-सी कोने में तेरी तो नहीं है...।
इश्क़ की, आशिक़ों की, कहानी कईं
तेरी मेरी है जैसी, किसी की नहीं है...।
प्यार की न भी हों, तक़रार की सही
वो जवानी ही क्या, गर कहानी नहीं है...।
दर्द में तेरे, मैं भी हूँ शामिल ऐ दोस्त
आँख तेरी ही नम, ये मुनासिब नहीं है...।
मुहब्बत की राहें है, चलना सम्भल
अनजानी डगर और मन्ज़िल नई है...।
यूँ उठती हैं लहरें कि छू लेंगी चाँद
भरम में जीने वालों की, कमी तो नहीं हैं...।
इश्क तो है इबादत, तू कर, यूँ न डर
मिले सबको ही धोखा, ज़रूरी नहीं है...।
दौड़ाती हैं ख्वाहिशें, सभी को ऐ दोस्त
बैठा थक के यहाँ, तू अकेला नहीं है...।
बहुत हो चुका खिलवाड़ ज़िन्दगी से
वक्त हो चला है कम, गुंजाइश नहीं है...।
पीछा करती हैं यादें, ढूँढ़ लेती भी हैं
एक मैं ही गिरफ्त में, ऐसा नहीं है...।
गर्दिश में थे तारें, तुम्हारे हमारे
बहाने बिछड़ने के, यूँ तो कईं हैं...।
कितने वायदे किए, कितने तोड़े, निभाए
ज़हन में तो हैं, पर ज़ुबानी नहीं हैं...।
बदल गया है वक़्त, बलखाती है चाल
मर्यादा का दायरा, अब भी वही है...।
कोई लाख चीखे, पुकारे, चिल्लाए
जो ग़लत वो ग़लत, जो सही वो सही है...!
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक! बहुत-बहुत बधाई आ. शैलेन्द्र जी, मुकेश जी एवं प्रीति जी, इतने सुंदर सृजन हेतु!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
सभी रचनाएँ सुन्दर एवं अत्यंत गहन|
ReplyDeleteसभी आदरणीय रचनाकारों को हार्दिक बधाइयाँ !!
गहन भावपूर्ण रचनाएं। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
शैलेन्द्र सिंह दूहन की कविता'हम दिव्यांग नहीं में सत्ताधीशों के आचरण के प्रति क्षोभ से उत्पन्न तीव्र कटाक्ष है।मुकेश बेनिवाल की सहज भावाभिव्यक्ति प्रभावी हैं वही प्रीति अग्रवाल की अनुभूतियों में भावुक मन की सीधी-सच्ची बातें है।उनकी एक अनुभूति के साथ तीनो रचनाकारों को बधाई-
ReplyDelete"दौड़ाती हैं ख्वाहिशें, सभी को ऐ दोस्त
बैठा थक के यहाँ, तू अकेला नहीं है...।"
कमाल की रचनाएँ हैं सभी,पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleteआ.शैलेन्द्र जी,मुकेश जी एवँ प्रीति जी को बहुत-बहुत बधाई !
एक से एक सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ...शैलेन्द्र जी, मुकेश जी तथा प्रीति आप सबको बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteसभी रचनाओं में बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । एक से बढ़कर एक ।शैलेंद्र जी,मुकेश जी,प्रीति जी आप तीनों को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएं मनभावक , हृदय को स्पर्श करने वाली बहुत गम्भीर विचारों को समेटे हुए हैं | शुभकामना सहित श्याम हिन्दीचेतना
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज भाई साहब आपका बहुत बहुत आभार जो समय समय पर मुझे सबसे मिलवाते रहते हैं...!!
ReplyDeleteआदरणीय त्रिपाठी भाई साहब जी, सुदर्शन दी, कृष्णा जी, ज्योत्स्ना जी, शिवजी भैया, रीत जी, ऋता जी और अनिता जी, आप सब के स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभार!!
सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं ।शैलेंद्र जी,मुकेश जी एवं प्रीति जी बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें ।
ReplyDeleteशैलेन्द्र सिंह दुहन की कविता आंदोलित करती है । शैलेन्द्र जी , मुकेश जी , प्रीति जी तीनों रचनाकारों का भावनात्मक सृजन । सभी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि