[ भाई
रमेशराज सिद्धहस्त कवि हैं, जिनकी छन्द पर बहुत गहरी पकड़ है। कुण्डलिया और दुर्मिल
सवैया छन्द में आपकी दो कविताएँ प्रस्तुत हैं।]
रमेश
राज
1-कुण्डलिया
जनता
युग-युग से रही भारत माँ का रूप
इसके
हिस्से में मगर भूख गरीबी धूप।
भूख
गरीबी धूप, अदालत में फटकारें
सत्ता-शासन
रोज, इसे पल-पल दुत्कारें।
बहरी
हर सरकार, चलो कानों को खोलें
जनता
की जय आज, आइये हम सब बोलें ॥
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2-दुर्मिल सवैया छंद में तेवरी
[ आठ सगण=112 के क्रम में
24 वर्ण ]
इस
कोमल से मन को मिलता, अपमान कभी, विषपान कभी
सुख
से न रही पहचान कभी, मुख पै न सजी मुसकान कभी।
मन
को दुःख के अनुप्रास मिले, सच को जग में उपहास मिले
रचती
मुरली मधुतान कभी, हम भी बनते रसखान कभी।
हमको
कटु से कटु भाव मिले, अलगाव मिले, नित घाव मिले
मधुमास-भरे, अति हास-भरे, हम पा न सके मधुगान कभी।
अभिवादन
बीच सियासत है, दिखने-भर को बस चाहत है
जग
बादल-सा छल में झलका, गरजा न कभी-बरसा न कभी।
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