रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
ज़हर मत जाति का बाँटो
ये हवा विषैली होगी ।
नफ़रत के दमघोंट धुएँ से
धरती मैली होगी।
आग लगाने
वाले हाथों
निर्माण
नहीं होता ।
मुस्कान
छीनने से जग में
कल्याण
नहीं होता ।
इतिहासों के उजले पन्ने
कर बैठौगे काले ।
लड़वाकरके मौज करेंगे
आग लगाने वाले ।
मज़हब
के चंगुल से निकले,
उन्हें
जाति बाँट रही ।
प्यार
मिटाकर नफ़रत की ही
अब फ़सलें
काट रही ।
चेहरों पर डर लिख देने से
कुछ नहीं पाओगे ।
अपने हाथ काटकर कैसे
क़िस्मत लिख पाओगे .
रहो
प्रेम से सब मिल-जुलके,
यह डोर
नहीं तोड़ो
अनजाने
जो धागे टूटे
उनको
फिर जोड़ो ।
-0-(7 मार्च,
2016)
रहो प्रेम से सब मिल-जुलके,
ReplyDeleteयह डोर नहीं तोड़ो
अनजाने जो धागे टूटे
उनको फिर जोड़ो ।
काश ! लोग यही समझ लें तो यहीं, इसी धरती पर, स्वर्ग जैसा सुख हो जाएगा | बहुत अच्छी और सार्थक कविता है...| मेरी हार्दिक बधाई...|
शब्द अलग हैं भाव एक है ,
ReplyDeleteजग को आज जरूरत है ,
इतने सुंदर विचारों की ,
दोनों किवताएं बड़ी सुशोभित हैं | श्याम हिन्दी चेतना
बहुत सुंदर विचार,और सुंदर कविता
ReplyDeleteसुंदर कविता।
ReplyDeleteसार्थक प्रासंगिक रचना। साधुवाद।
ReplyDeleteआप सबके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत सार्थक व समसामयिक रचना।
ReplyDeleteआज ऐसी कविताओं की बेहद ज़रुरत है ताकि लोग सोचने को विवश हों. बेहद प्रासंगिक कविता. बधाई भैया.
ReplyDeleteबहुत सकारात्मक सोच वाली रचना। यथार्थ को उजागर करती।
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