रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बाहर भीतर कोलाहल है
ढेर गरल, कुछ गंगाजल है।
सबको में पहचानूँ कैसे
ढेर गरल, कुछ गंगाजल है।
सबको में पहचानूँ कैसे
सबके द्वार मची हलचल है।
दर्पण-सा मन बना ठीकरा
जग में माटी के चोले का ।
दो कौड़ी भी दाम मिला ना
अरमानों के इस झोले का।
बरसों बीते पत्र पुराने
झोले में थे खूब सँभाले।
जिनका अता-पता ना जाने
उनको कैसे करें हवाले।
छाया-हिमांशु |
कोई
तो बस दो पल दे दे
खुद से ही कुछ कर लें बातें
अब उनसे क्या कहना हमको
दी जिस-जिसने काली रातें।
खुद से ही कुछ कर लें बातें
अब उनसे क्या कहना हमको
दी जिस-जिसने काली रातें।
मेपल से भी कभी पूछना
निर्जन वन है कैसे भाया
पतझर जब आ बैठा द्वारे
कैसे उसने पर्व मनाया!
-0-
बेहद सशक्त पंक्तियाँ, आपको हार्दिक बधाई
ReplyDeleteमार्मिक रचना है आदरणीय रामेश्वर सर... लगता है जैसे अपनी ही कहानी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता और चित्र भी अच्छा है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया 🙏
ReplyDeleteसादर प्रणाम भाई साहब, हृदयस्पर्शी रचना!बहुत ही सुंदर भाव।
ReplyDeleteढेर गरल कुछ गंगाजल है..
दर्पण सा मन बना ठीकरा..
मेपल से भी कभी पूछना..
संवेदना को झंकृत करती,भावुक मन की सहज अभिव्यक्ति।बहुत सुंदर,सशक्त और प्रभावी कविता।साधुवाद भाई साहब।
ReplyDeleteBahut sunder kavita hai Bhaiya Bhavni aur shabd dono hi bahut sunder hain
ReplyDeleteSaader
Rachana
हिमांशु जी आपकी इस रचना में एक घनीभूत पीड़ा है ; कसक है ;वेदना है | यह दुनियां मक्कारों की है | सरलता तो यहाँ निर्रर्थक है | गांधी की यह बात याद आती है ," भलाई करने वाले भलाई किए जा ,और बुराई के बदले दुआएं दिए जा | " हर पथ पर शूल बिछे हैं अब किस पथ पर जाऊं ? अंगारे ही अंगारे है कैसे अपने को बचाएं? श्याम हिंदी चेतना
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना है. यूँ जैसे हमारे मन के भाव को आपने शब्दों में पिरो दिया है. बेहद गहन एवं भावपूर्ण रचना के लिए आभार व बधाई.
ReplyDeleteभावविभोर कर देने वाली रचना.... सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
मर्मस्पर्शी रचना भैया। नमन आपको।
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ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन भैया जी..सादर नमन आपको और आपकी लेखनी को !
ढेर गरल कुछ गंगाजल है..
दर्पण सा मन बना ठीकरा..
मेपल से भी कभी पूछना
बहुत ही गहन अनुभूति लिए दिल को छूती रचना
ReplyDeleteसादर नमन
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसभी रसज्ञ पाठकों का हार्दिक आभार । रामेश्वर काम्बोज
ReplyDeleteहृदय को छूने वाली मार्मिक कविताएँ! आदरणीय भैया जी, आपको एवं आपकी लेखनी को सादर नमन!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित