पथ के साथी

Saturday, October 12, 2019

933-मेपल से भी कभी पूछना

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


बाहर भीतर कोलाहल है
ढेर गरल, कुछ गंगाजल  है।
सबको में पहचानूँ कैसे
सबके द्वार मची हलचल है।


दर्पण-सा मन बना ठीकरा
जग में माटी के चोले का ।
दो कौड़ी भी दाम मिला ना
अरमानों के इस झोले का।

बरसों बीते पत्र पुराने
झोले में थे खूब सँभाले
जिनका अता-पता ना जाने
उनको कैसे करें हवाले।

छाया-हिमांशु
कोई तो बस दो पल दे दे
खुद से ही कुछ कर लें बातें
अब उनसे क्या कहना हमको
दी जिस-जिसने काली रातें

मेपल से भी कभी पूछना
निर्जन वन है कैसे भाया
पतझर जब आ बैठा द्वारे
कैसे उसने पर्व मनाया!
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19 comments:

  1. बेहद सशक्त पंक्तियाँ, आपको हार्दिक बधाई

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  2. मार्मिक रचना है आदरणीय रामेश्वर सर... लगता है जैसे अपनी ही कहानी है।

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  3. बहुत अच्छी कविता और चित्र भी अच्छा है

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  4. सादर प्रणाम भाई साहब, हृदयस्पर्शी रचना!बहुत ही सुंदर भाव।
    ढेर गरल कुछ गंगाजल है..
    दर्पण सा मन बना ठीकरा..
    मेपल से भी कभी पूछना..

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  5. संवेदना को झंकृत करती,भावुक मन की सहज अभिव्यक्ति।बहुत सुंदर,सशक्त और प्रभावी कविता।साधुवाद भाई साहब।

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  6. बहुत बढ़िया

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  7. Bahut sunder kavita hai Bhaiya Bhavni aur shabd dono hi bahut sunder hain
    Saader
    Rachana

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  8. हिमांशु जी आपकी इस रचना में एक घनीभूत पीड़ा है ; कसक है ;वेदना है | यह दुनियां मक्कारों की है | सरलता तो यहाँ निर्रर्थक है | गांधी की यह बात याद आती है ," भलाई करने वाले भलाई किए जा ,और बुराई के बदले दुआएं दिए जा | " हर पथ पर शूल बिछे हैं अब किस पथ पर जाऊं ? अंगारे ही अंगारे है कैसे अपने को बचाएं? श्याम हिंदी चेतना

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  9. बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना।

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  10. बहुत हृदयस्पर्शी रचना।

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  11. बेहद मार्मिक रचना है. यूँ जैसे हमारे मन के भाव को आपने शब्दों में पिरो दिया है. बेहद गहन एवं भावपूर्ण रचना के लिए आभार व बधाई.

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  12. भावविभोर कर देने वाली रचना.... सुंदर सृजन
    हार्दिक शुभकामनाएँ

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  13. मर्मस्पर्शी रचना भैया। नमन आपको।

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  14. हृदयस्पर्शी सृजन भैया जी..सादर नमन आपको और आपकी लेखनी को !
    ढेर गरल कुछ गंगाजल है..
    दर्पण सा मन बना ठीकरा..
    मेपल से भी कभी पूछना

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  15. बहुत ही गहन अनुभूति लिए दिल को छूती रचना
    सादर नमन

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  16. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  17. सभी रसज्ञ पाठकों का हार्दिक आभार । रामेश्वर काम्बोज

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  18. हृदय को छूने वाली मार्मिक कविताएँ! आदरणीय भैया जी, आपको एवं आपकी लेखनी को सादर नमन!

    ~सादर
    अनिता ललित

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