पथ के साथी

Monday, September 23, 2019

932-हिम्मत हमारी


 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

1
पता चला कोई मुझसे  क्यों दूर था।
बुरा न सोचा कभी ,इतना कुसूर था।
2
पीठ में खंज़र मारा और  फिर हँस दिए।
दोस्ती का यह सिला कोई आपसे सीखे।

3
आँधियाँ, और लहरें तोड़ती किश्ती
चाहकर हिम्मत हमारी तोड़ ना पाई।
-0-

10 comments:

  1. कटु सत्य कहती रचनाएँ
    सुंदर सृजन हार्दिक शुभकामनाएँ सर

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  2. तीर एकदम निशाने पे लगाया है भाई साहब। वास्तविकता दर्शाती सुंदर रचना! आपको बधाई।

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  3. उम्दा अभिव्यक्ति... हार्दिक शुभकामनाएँ भाईसाहब।

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  4. हृदय से निकली हुयी कुछ बातें जीवन की सत्यता की ओर संकेत करती हैं | "किसी ने ठीक लिखा है कि,"जग सुने न इतना धीरे गा , चुपचाप सुलग बाहर मत आ|| कब किसका दर्द बताया है कोलाहल ने ,यह कहा संन्यासी बादल ने | किस्मत की सोयी रेख जगाना मुश्किल है , इस धरती के अहसान चुकाना मुश्किल है || श्याम -हिन्दी चेतना

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  5. कड़वे सच को दर्शाती सुन्दर रचना.... हार्दिक बधाई भैया जी !!

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  6. भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    हिम्मत वाली सकारात्मक सबसे सुंदर व प्रेरणादायक।
    नमन आपको।

    भावना सक्सैना

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  7. चाह कर हिम्मत हमारी तोड़ ना पाई। बहुत सुंदर । हार्दिक बधाई

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  8. कटु सत्य! दिल को छू गईं सभी रचनाएँ!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. सर आपकी पंक्तियों ने मन विचलित कर दिया

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  10. सबका बहुत आभारी हूँ।।

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