क्षणिकाएँ
1-प्रियंका गुप्ता
1
यादें-
जैसे एक आँच लगी हो उँगली में
और तिलमिला जाए मन;
या फिर
अँधेरे में
लगी हो एक ठोकर
बिन दिखे घाव में
दर्द भयंकर;
तकलीफ़ तो होती है-
है न ?
2
यादें-
जैसे सर्द हवा में
बोनफायर के सामने बैठ
हाथ तापना;
या फिर
किसी रेगिस्तान में
झुलसने से पहले
नखलिस्तान का मिल जाना;
राहत तो मिलती है-
है न ?
3
अकेलापन
जैसे सीली सी धूप में
गीले कपड़े सुखाना
या फिर
आसमान की नमी को
आँखों में छुपाना;
बहुत देर नमी रहे तो
फफूँदी लग जाती है-
है न ?
4
अकेलापन
जैसे किसी अनजानी कील से
टीसता छिलापन
या फिर
गर्म धूप में भागते हुए
झुलसा पैर;
किसी को समझाओगे कैसे
बहुत दर्द होता है-
है न ?
-0-
2-तुम्हारे लिए
मंजूषा मन
सावन
तुम्हारे लिए
आसान था कह देना
मेरी नौकरी को
दो टकियन की,
पर दो टके की इस नौकरी से
पलते कितने ही पेट
इसी से आती है अम्मा की दवा,
इससे बच्चे जा पाते हैं स्कूल
भले ही होगा लाखों का
तुम्हारा सावन
पर दो टके की न कहो
मेरी नौकरी को।
-0-
प्रियंका जी की क्षणिकाएँ आसमान-सा विस्तार लिए हुए है, बहुत भावपूर्ण, बधाई.
ReplyDeleteदो टके की नौकरी न हो तो लाखों का सावन भी मन को खटकता है. बहुत अच्छी रचना, बधाई मंजूषा जी.
हार्दिक आभार आपका जेन्नी जी
Deleteप्रियंका यादों को अापने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से परिभाषित किया है !
ReplyDeleteऔर मंजूषा जी ... अापने तो कमाल ही कर दिया, एक सदियों से प्रचलित बात के विपरीत एकदम अनूठे ढंग से जो बात कही वह बिलकुल सटीक और तर्कसंगत है।
दोनो ही बहुत सुन्दर रचनाएँ, बधाई हो
बहुत बहुत आभार मंजू जी...
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteप्रियंका जी यादों के प्रभावशाली चित्रण के साथ अकेलेपन की पीड़ा को बखूबी उभारा है आपने, वाह!!!
ReplyDeleteमंजूषा जी ने कल्पना से परे वास्तविक सत्य का उद्घाटन किया है,वाह !बहुत सुन्दर!
बहुत बहुत आभार आपका सुरँगमा जी
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति...प्रियंका जी। बहुत सुंदर कविता...मंजूषा जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteजो कृष्णा जी बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर रचनाएँ ।प्रियंका जी , मन जी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सुदर्शन दीदी
Deleteयादें और अकेलापन एक साथ .....प्रियंका जी बहुत सुंदर मनभावन रचनाएँ
ReplyDeleteमंजूषा जी की कविता सच बयाँ करती.....
प्रियंका जी एवं मंजूषा जी.... हार्दिक बधाइयाँ
बहुत बहुत धन्यवाद पूर्वा जी
Deleteबहुत बहुत आभार आपका रामेश्वर सर.. आपने कविता को सहज साहित्य में प्रकाशन योग्य समझा..
ReplyDeleteसादर नमन
बहुत सुंदर क्षणिकाएं प्रियंका जी... बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी का बहुत बहुत आभार जिन्होंने मेरी क्षणिकाओं को यहाँ स्थान देकर मेरा मान बढ़ाया...|
ReplyDeleteमंजूषा जी, बहुत सटीक सच्चाई प्रस्तुत की है आपने...| किसी भी पल की सुन्दरता अभावों में महसूस नहीं की जा सकती | हार्दिक बधाई...|
आप सभी की इतनी प्यारी और उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए दिल से शुक्रिया...|
प्रियंका जी और मंजूषा जी आप दोनों को हार्दिक बधाई अकेलेपन और सावन में नौकरी को उल्हाना देती क्षणिकाएं हैं बहुत सुंदर भाव |
ReplyDeleteप्रियंका जी अकेलेपन और यादों को आपने खूब समझा है, बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteमंजुषा जी,सच कहा आपने। भूखे पेट तो भजन भी न होए! नवीन दृष्टिकोण!!बधाई!
सुंदर क्षणिकाएँ
ReplyDeleteप्रियंका ने यादों और अकेलेपन को लेकर मार्मिक और नए सुन्दर बिम्ब रचे हैं . क्या बात है . मंजूषा जी ने भी फिल्मी गीत का अलग अन्दाज में बढिया विश्लेषण किया है .
ReplyDelete