भावना सक्सैना
भाईचारा
रहे,
लेकिन
इस जहाँ में
ख़ौफ़ भी ज़रूरी है।
आदमी
को आता नहीं
शऊर
बिना ख़ौफ़ के,
आदमी
इंसान रहे
इसलिए
ख़ौफ़ ज़रूरी
है।
कानून
को चाहिए
कि
खाल खिंचवा ले
सरेआम, गुनहगारों
की,
बालों
से लटकाए
नाखून खिंचवा
ले
सर
कलम हों चौराहों पर
या
मिले फाँसी वहीं
अंजाम
हो कुछ भी मगर
ख़ौफ़ जरूरी है
मोहब्बत
में अक्सर
हो
जाता है धोखा
सोचे
सौ बार कोई
जहालत
से पहले
न
टूटे भरोसा
ईमान
रहे कायम
बस
इसीलिए जहाँ मे
खौफ़ ज़रूरी है
दमदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसही बात......
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
भावना जी हार्दिक बधाइयाँ
मेरे भाव को यहाँ स्थान देने के लिए काम्बोज भैया की हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteअनिता जी, पूर्वा जी उत्साहवरिधन के लिए आभार।
सादर,
भावना सक्सैना
सचमुच! इन्सान तो ख़ौफ़नाक जानवरों से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो गया है अब तो! वहशी दरिंदों के लिए ख़ौफ़ बहुत ज़रूरी है!
ReplyDeleteसही संदेश देती कविता भावना जी! बहुत बधाई आपको इस अभिव्यक्ति के लिए!!!
~सादर
अनिता ललित
'भय बिन होय न प्रीत 'तुलसीदास जी ने कहा है । आपने बिलकुल सही कहा खौफ जरूरी है ।बधाई आपको ।
ReplyDeleteभावना जी बिलकुल सत्य है आज के इंसान के लिए खौफ़ ज़रूरी है समाज का खौफ् न हो तो इन्सान जानवर से भी बदतर हो जाता है |
ReplyDeleteबढ़िया पैग़ाम देती ज़ोरदार रचना...बहुत बधाई भावना जी।
ReplyDeleteख़ौफ़ ज़रूरी है। एक ऐसा संदेश जो वर्तमान परिस्थितियों में ज़रूरी हैं। सुंदर कविता।बधाई भावना
ReplyDeleteबात तो बिलकुल सही कही है, डर अक्सर बहुत ज़रूरी हो जाता है |
ReplyDeleteअच्छे सृजन के लिए बहुत बधाई |
ReplyDeleteसही संदेश देती एक बढ़िया रचना...बहुत बधाई भावना जी।