डॉ.पूर्णिमा
राय ,पंजाब
कान्हा
तेरी प्रीत ही है जीवन आधार
रंग
भरो बस प्रेम का, क्षणभंगुर संसार ।।
कमलनयन
के प्रेम में, राधा है बेचैन
मीरां
बनकर घूमती,चाहे हर
पल प्यार।।
बाट
जोहते नैन हैं ,हाल हुआ
बेहाल
दर्शन
दे दो साँवरे ,लीला
अपरम्पार।।
स्वार्थ
-भरी जीवन
डगर ,मोह लोभ
की धूप
मन
सुमिरन औ'
कर्म
से श्याम मिले साकार।।
उदित
सूर्य में
‘पूर्णिमा’ मुख पर है
मुस्कान
रंग
न उतरे प्रीत का, जीवन -नैया
पार।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (10-06-2019) को "बेरोजगारी एक सरकारी आंकड़ा" (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'