पथ के साथी

Friday, May 3, 2019

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रमेशराज

 1-शृंगारिणी छंद (राजभा X4=यानी 212+212 + 212+ 212)]

1
आपने नूर की क्या नदी लूट ली 
गीत के नैन की रोशनी लूट ली
क्या यही आपकी है समालोचना  ?
शब्द के अर्थ की ज़िन्दगी लूट ली

ऐ कहारों कहो क्या हुआ हादिसा  !
आपने तो नहीं पालकी लूट ली ?
पांडवो आज भी आपकी भूल से  
कौरवों ने सुनो द्रौपदी लूट ली !

-0-
2-दोधक ( भानस X3+2+2 यानी 211+211+211+2+2)

देख न पूनम-मावस गोरी
रास रचा, अब लै रस गोरी।
मेल-मिलाप भयौ पल कौ ही
प्यास रही जस की तस गोरी।

प्रेम-पगे मन मे विष फैले
नागिन-सौ तन लै डस गोरी।
गा अब गा नवप्रेम-कथा को
भानस भानस भानस गोरी।
-0-

9 comments:

  1. यमाताराजभाणसलगा की याद दिला गई । सुंदर भाव को छंद बद्ध करने के लिए बधाई ।

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  2. टंकण की त्रुटि हेतु क्षमा यमाताराजभानसलगा

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  3. दोनो ही छन्दों में सुंदर सृजन।रमेशराज जी को बधाई।

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  4. बहुत खूब

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  5. दोनों छंदों में सुंदर रचनाएँ।बधाई

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  6. सभी साहित्यिक विद्वानों के साथ-साथ हिमांशु जी का शतशत आभार

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  7. बहुत सुन्दर और सहज सृजन है...| हार्दिक बधाई...|

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  8. बहुत सुन्दर सृजन रमेशराज जी l
    बहुत-बहुत बधाई आपको !!

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  9. बहुत सुन्दर सृजन रमेश जी हार्दिक बधाई |

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