रमेशराज
1-शृंगारिणी छंद (राजभा X4=यानी 212+212 + 212+ 212)]
1
आपने नूर की क्या नदी लूट ली
गीत के नैन की रोशनी लूट ली ।
क्या यही आपकी है समालोचना ?
शब्द के अर्थ की ज़िन्दगी लूट ली ।
ऐ कहारों कहो क्या हुआ हादिसा !
आपने तो नहीं पालकी लूट ली ?
पांडवो आज भी आपकी भूल से
कौरवों ने सुनो द्रौपदी लूट ली !
-0-
2-दोधक
( भानस X3+2+2 यानी 211+211+211+2+2)
देख न पूनम-मावस गोरी
रास रचा, अब लै रस गोरी।
मेल-मिलाप भयौ पल कौ ही
प्यास रही जस की तस गोरी।
प्रेम-पगे मन मे विष फैले
नागिन-सौ तन लै डस गोरी।
गा अब गा नवप्रेम-कथा को
भानस भानस भानस गोरी।
-0-
यमाताराजभाणसलगा की याद दिला गई । सुंदर भाव को छंद बद्ध करने के लिए बधाई ।
ReplyDeleteटंकण की त्रुटि हेतु क्षमा यमाताराजभानसलगा
ReplyDeleteदोनो ही छन्दों में सुंदर सृजन।रमेशराज जी को बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteदोनों छंदों में सुंदर रचनाएँ।बधाई
ReplyDeleteसभी साहित्यिक विद्वानों के साथ-साथ हिमांशु जी का शतशत आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सहज सृजन है...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन रमेशराज जी l
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आपको !!
बहुत सुन्दर सृजन रमेश जी हार्दिक बधाई |
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