काश!
तुम जी लेती
प्रो0 इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी
नन्ही -सी
कली थी,
कल ही तो
खिली थी।
आँखों
में लिये सपने,
कैसे
होंगे उसके अपने?
बिंदास
अंदाज से भरी,
प्रीत-प्रेम
भाव से भरी ।
एक बन्धन
की स्वीकृति,
अनजाने
रचती हुई कृति।
सब कुछ
ठीक- ठाक था,
अनवरत-
सा दिन- रात था।
धीरे-
धीरे गुमशुम होती रही,
आँखों
में वो चमक न रही।
किसी ने
न दिया ध्यान
अपने भी
बने रहे अंजान।
कभी नहीं
की कोई शिकायत
किसी से कोई नहीं शिकायत।
अनमने
करती रही प्रयाण
खोजते
रहे जीवन के प्रमाण।
खुला जब
छुपा- सा तमाशा,
भाव
उमड़े थे तब बेतहाशा ।
आत्महत्या
नोट ,खुला
राज,
क्यों
बेजुबान बने सब आज।
ये छद्म
रूप था अपनों का,
मत देना
अधिकार मेरे सपनों का।
नहीं
अधिकार उन्हें अब कोई,
बेअसर थे, जब
मैं फूटकर रोई।
दाह
संस्कार, न करे वो स्पर्श,
जीते जी
दिया जिसने भाव -दंश।
हिंसा बस
मारपीट ही नहीं होती,
नैसर्गिक
ख़ुशी पर रोक भी होती।
पर
काश!तुम न हारती,
काश तुम
जिन्दा रह लेती।
अपनी
लड़ाई लड़ तो लेती,
एक इतिहास रच तो लेती.....।
-0- प्रो0
इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी
(विभागाध्यक्षा,दर्शनशास्त्र विभाग,हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय
श्रीनगर
गढ़वाल उत्तराखण्ड)
बहुत हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteइन्दू जी बहुत-बहुत बधाई।
हृदयस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई इन्दु जी ।
ReplyDeleteमार्मिक कविता | सु. व.
ReplyDeleteबहुत अच्छी मार्मिक यथार्थवादी रचना। गुरु जी को सादर बधाई नमन।
ReplyDeleteकितना दर्द समेटे है ये रचना ...बेहद मार्मिक इन्दु जी!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी कविता।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteइन्दु ज मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिये दिली बधाई लें ।
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना.
ReplyDeleteसमाज को चेतन करता सृजन...नमन
ReplyDeleteकोमल कलियों पर अत्यचार की कहानी । क्या समाज उन्हें कभी मन की खुशियाँ पूरी करने का अधिकार देगा ? यह प्रश्न उठाती कविता भावुक कर गई ।
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी आपने सहज साहित्य में मेरी कविता को स्थान दिया। आपका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteउफ़! कितनी अनकही पीड़ा इसी तरह का अंत चुन लेती है अपने लिए...| अवसाद का सबसे दुखद पहलू यही तो होता है कि जिनके सहारे की इंसान को अवसाद के क्षणों में ही सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, वही इन पलों से सबसे ज्यादा अनजान औए दूर होते हैं...| जाने कितनी बातें उमड़ने घुमड़ने लगी मन में आपकी ये मार्मिक रचना पढ़ के...पर फिलहाल शब्द जैसे गूँगे हो चुके है...|
ReplyDeleteदिल को छू गई बस...|