पथ के साथी

Thursday, January 4, 2018

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1-कविता
प्रियंका गुप्ता

लो,
आज सौंप रही हूँ तुम्हें
तुम्हारे दिए सभी वादे;
खोल रही हूँ
अपना नेह-बंधन
मेरे प्यार के पिंजरे का
ताला खुला है
जाओ,
खूब ऊँची परवाज़ भरो
दूर तक विस्तार करो
अपने पँखों का
और जब कभी थक जाना
तो लौटना नहीं
मैं तक न सकूँगी तुम्हारी राह,
इंतज़ार भी नहीं करूँगी
तुम्हारे लौट आने का
क्योंकि
तुमने शायद
कभी ठीक से देखा ही नहीं;
मैं बसेरा थी तुम्हारा
कोई सराय नहीं...।
-0-
2-हँसते जाना है
मंगल यादव
    हर पल हँसते जाना है
उम्मीद नहीं किसी से करना है
बस आगे ही बढ़ते जाना है
मिलेंगी रुकावटें राह में
मुश्किलों से लड़ते जाना है..
हर पल हँसते जाना है
ये ठान लो काम करके ही रहना है
ना मुमकिन कुछ भी नहीं
हर काम होता है नया
रोजाना कुछ न कुछ नया करना है
हर पल चलते जाना हैं
हर पल हँसते ते जाना है
ये मानकर चलो अकेले चलते जाना है
साथ में केवल आत्म विश्वास ही रहना है
बस आगे ही बढ़ते जाना है
हर पल हँसते सते जाना है
शिकवा-शिकायतें रहेगी बहुत
दरकिनार करते जाना है
लोगों को पढ़ते जाना है
प्यासे पक्षी की तरह
लक्ष्य पर आगे बढ़ते जाना है
जो भी मिले गले लगाते जाना है
हर पल हँसते जाना है।

-0-

21 comments:

  1. सबसे पहले तो दिल से आभार मेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए...।
    मंगल जी, आपकी रचना बहुत अच्छी और प्रेरणादायक है, हार्दिक बधाई ।

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  2. प्रियंका जी एवं मंगल जी को सुन्दर रचनाओं हेतु बधाई /

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  3. मर्मस्पर्शी रचना प्रियंका जी ...हार्दिक बधाई !
    सुंदर ,प्रेरक प्रस्तुति मंगल जी ..बहुत बधाई !!

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  4. प्रियंका जी बहुत भावुकता में एक स्वीकृती और अलगाव की झलक लिए हुए सुन्दर सृजन है |मंगल जी आपको भी इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई |

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  5. प्रियंका जी बहुत हृदयस्पर्शी रचना..बहुत बधा॥
    मंगल जी उत्साहप्रद रचना के लिए बहुत बधाई।

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  6. प्रियंका जी हृदयस्पर्शी सृजन, मंगल जी आशा,उत्साह भरी रचना,आप दोनों को हार्दिक बधाई

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  7. बहुत बहुत उम्दा और बेहतरीन रचनाओं के प्रियंका गुप्ता जी एवं मंगल यादव जी बहुत बहुत बधाई ।

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  8. बेहतरीन रचनाओं के लिये प्रियंका जी व मंगल यादव जी को बधाई ।

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  9. प्रियंका जी,'मैं बसेरा थी, सराय नहीं' इन शब्दों ने मुझे अंदर से भेद दिया| आज की परिस्थिति पर एक कटाक्ष है यह रचना| बहुत बधाई |

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  10. मंगल यादव जी को एक सकारात्मक सोच वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई|

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  11. बहुत ही ख़ूबसूरत कविताएँ दोनों!
    'मैं बसेरा थी, कोई सराय नहीं!'... बहुत ही ख़ूब! हार्दिक बधाई प्रियंका जी!

    मंगल जी... बहुत सुंदर, उत्साह बढ़ाती प्रेरक कविता! हार्दिक बधाई आपको!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  12. बेहद खूबसूरत रचनाएँ !
    आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !

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  13. आप सभी का एक बार फिर से हार्दिक आभार !

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