पीपल प्रेमी की बाहों में
डॉ कविता भट्ट (हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड)
साँसे कुछ रुक-रुककर चली जा रही थी
धड़कन बीमार कुछ-कुछ रुकी जा रही थी
डॉक्टर ने भेजा दवा का लम्बा चिट्ठा
लिखकर
आँखें कृश देह
रूपसी की मुँदी जा रही थीं।
जीवन से क्षुब्ध, तन से दु:खी हो जा रही थी
व्यथित, पसीने से नहाई, रोतीं-कुढ़ी
जा रही थी
शीतल स्पर्श पाकर, वो रुकी कुछ ठिठककर
पीपल प्रेमी मुस्कुराता खड़ा, बाहें खुली
जा रही थीं।
आँचल गिरा, उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी
सरसराहट पत्तियों की कानों में घुली जा रही थी
प्रेमगीत धुन पर, दुलारा-सहलाया उसने जी भरकर
प्रिय की साँसे
जीवन को साँसें दिए जा रही थीं।
जिसके चुम्बन से वो इतना लहरा रही थी
रूप का लोभ न था, इसके प्रेम पर इतरा रही थी
यौवन-मोह तजे योगी सा- लिंग-धर्म-जाति से ऊपर
प्रेम बाँटती असंख्य बाहें, जीवन-अमृत
बरसा रही थीं।
जिसकी खोज में उम्र निकलती ही जा रही थी
स्त्री-पुरुष-शरीरों की परिधि से रहित रटे जा रही थी
काश! मानव में भी फूटें ऐसे ही उन्मुक्त प्रेम-निर्झर
‘कविता’ पीपल प्रेमी की बाहों
में ये बुदबुदा रही थी।
2-गुंजन अग्रवाल
गीत
कैसे ये तीज मनाऊँ मैं।
कैसे तो रीझ दिखाऊँ मैं।
बिन साजन सूना सावन है।
सूना ये मन का आँगन है।
धूमिल आंखों का काजल है
घिरता यादों का बादल है
तुझको तो सनम बुलाऊँ मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं.......
झूलों पर पींग भरें सखियाँ
यादें झरती रहती अँखियाँ
हाथों की मेहंदी चिढ़ा रही।
सौंधी सी महक उड़ा रही।
जब तुझको पास न पाऊँ मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं........
चंचल सी शोख हसीना- सी।
पुरवा संग झूम सफीना -सी।
पुरवा जब छेड़ा करती थी।
मीठी अँगड़ाई भरती थी।
अब गीत न कजरी गाऊँ मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं.....
-0-
डाॅ . कविता भट्ट जी की बहुत सुन्दर दृष्टिकोण की कविता 'पीपल न्रेमी की बाँहों में 'पढ़ी । प्रकृति से मानव को सीख लेनी चाहिये और वैसा ही प्यार बाँटना चाहिये । संदेशात्मक कविता के लिये बधाई । गुंजन जी का तीज का गीत बहुत सरस है । बधाई ।
ReplyDeleteआभार, मयंक जी एवं रश्मि जी आपके उत्साहवर्धन हेतु।
ReplyDeleteकविता भट्ट जी बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteगुंजन जी तीज पर प्यारा गीत ।
आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
Dono hi rachnayen bahut bhavpurn hain bahut bahut badhai.
ReplyDeleteआदरणीया कविता जी और गुंजन जी आप दोनों की बेहतरीन रचनाओं के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteरचना और गीत दोनों ही बहुत बढ़िया। कविता जी, गुंजन जी आप दोनों को बधाई।
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचनाएँ...आप दोनों को बहुत बधाई...|
ReplyDeleteकविता जी की कविता अत्यंत अच्छी लगी गुंजन जी की भी कविता जिसमें पिया बिना तीज मनाने की कसक को सुन्दर शब्दों में बयान किया है बहुत मन भाई | आपदोनो को बधाई हो |
ReplyDeleteकविता जी आपकी ये पंक्तियाँ पीपल के माध्यम से प्रेम के पावन रूप को नई शबदवली से सुसज्जित करके नया अर्थ-गौरव दे रही हैं । -जिसके चुम्बन से वो इतना लहरा रही थी
ReplyDeleteरूप का लोभ न था, इसके प्रेम पर इतरा रही थी
यौवन-मोह तजे योगी सा- लिंग-धर्म-जाति से ऊपर
प्रेम बाँटती असंख्य बाहें, जीवन-अमृत बरसा रही थीं।
जिसकी खोज में उम्र निकलती ही जा रही थी
स्त्री-पुरुष-शरीरों की परिधि से रहित रटे जा रही थी
काश! मानव में भी फूटें ऐसे ही उन्मुक्त प्रेम-निर्झर
‘कविता’ पीपल प्रेमी की बाहों में ये बुदबुदा रही थी