रहबर (लघुकथा)
डॉ हरदीप कौर संधु
सरकारी अस्पताल में से उसे जवाब मिल चुका था। उसकी हालत अब नाज़ुक होती जा रही थी। आंतरिक रक्तस्त्राव के कारण जच्चा -बच्चा की जान को ख़तरा बनता जा रहा था। नाजर के माथे पर चिन्ता की रेखाएँ और गहरी होती जा रही थीं। बहुत कम दिन मिलते काम के कारण रूपये -पैसे का प्रबंध भी नहीं हुआ था। चौगिर्दा उसको साँस दबाता लग रहा था। उसकी साँस फूलने लगीं और वह ज़मीन पर बैठ गया।
"चल उठ ! नाजरा मन छोटा न कर पुत्र ! मैने तो पहले ही बोला था कि हम गिन्दो को काशी अस्पताल ले चलते हैं। वहाँ तेरा एक भी पैसा खर्च नहीं होगा अगर लड़की हुई तो। डाक्टरनी साहिबा लड़की होने पर कोई पैसा नहीं लेती। दवा भी मुफ़्त देती है और सँभाल भी पूरी होगी। " पड़ोस से साथ आई अम्मा ने सलाह देते हुए बोला।
नाजर अब लेबर रूम के बाहर हाथ जोड़कर बैठा था। शायद उस प्रभु की किसी रहमत की आशा में। मगर उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"लाडो गुड़िया हुई है ,कोई फ़ीस नहीं ,बस गुड़ की डलिया से सब का मुँह मीठा कीजिएगा। " रहबर बनी डाक्टर के बोल सुनकर नाजर की आँखों में शुक्राने के अश्रु तैरने लगे।
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डॉ हरदीप कौर संधु
सरकारी अस्पताल में से उसे जवाब मिल चुका था। उसकी हालत अब नाज़ुक होती जा रही थी। आंतरिक रक्तस्त्राव के कारण जच्चा -बच्चा की जान को ख़तरा बनता जा रहा था। नाजर के माथे पर चिन्ता की रेखाएँ और गहरी होती जा रही थीं। बहुत कम दिन मिलते काम के कारण रूपये -पैसे का प्रबंध भी नहीं हुआ था। चौगिर्दा उसको साँस दबाता लग रहा था। उसकी साँस फूलने लगीं और वह ज़मीन पर बैठ गया।
"चल उठ ! नाजरा मन छोटा न कर पुत्र ! मैने तो पहले ही बोला था कि हम गिन्दो को काशी अस्पताल ले चलते हैं। वहाँ तेरा एक भी पैसा खर्च नहीं होगा अगर लड़की हुई तो। डाक्टरनी साहिबा लड़की होने पर कोई पैसा नहीं लेती। दवा भी मुफ़्त देती है और सँभाल भी पूरी होगी। " पड़ोस से साथ आई अम्मा ने सलाह देते हुए बोला।
नाजर अब लेबर रूम के बाहर हाथ जोड़कर बैठा था। शायद उस प्रभु की किसी रहमत की आशा में। मगर उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
"लाडो गुड़िया हुई है ,कोई फ़ीस नहीं ,बस गुड़ की डलिया से सब का मुँह मीठा कीजिएगा। " रहबर बनी डाक्टर के बोल सुनकर नाजर की आँखों में शुक्राने के अश्रु तैरने लगे।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जो लोग आज भी कन्या जन्म को बदकिस्मती मानते हैं उनके लिये कथा एक करारे जवाब के रूप में है । सकारात्मक संदेश देती सशक्त कथा के लिये प्रिय डाॅ. हरदीप कौर संधु जी को बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसनेह विभा रश्मि
सबक़ देती कथा । सुन्दर । सुरेन्द्र वर्मा
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी लघुकथा डॉ हरदीप कौर जी
ReplyDeleteबहुत प्यारी लघुकथा है...| काश ! हर संपन्न इंसान भी बेटी के होने पर यूँ ही खुश हो सके...|
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...|
गुड़ की डलिया !हृदयस्पर्शी!नमन डॉ.हरदीप जी
ReplyDeleteकन्या के जन्म पर डॉक्टर द्वारा सशक्त कदम. बहुत अच्छी कथा. बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और संदेश देती हुई लघुकथा ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
बहुत सुंदर लघुकथा
ReplyDeleteवाह, सारगर्भित, सार्थक, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सार्थक लघुकथा। हार्दिक बधाई हरदीप जी।
ReplyDeleteबेटी के जन्म पर आज तक लोग खुशी नहीं दबी जबान से अफसोस ही जताते हैं । रहबर कहानी की डॉक्टर ने यह सही कदम उठाया । बेटियों के आने पर भी लोग खुशी मनाये । चाहे गुड की डलिया से ही मुंह मिठा किया ।अच्छी शिक्षात्मक कहानी के लिये हरदीप जी आप को हार्दिक बधाई ।
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