गिरीश
पंकज
रक्षा का यह बंध है, उज्ज्वल इसकी रीत।
भाई-बहन के नेह का, गूँजे नित संगीत ।
सूत्र नहीं यह रेशमी, भावों का अनुबन्ध।
भाई-बहिन का नेह है, ज्यों मधुरिम
मकरंद।
हर बहना रक्षित रहे, राखी का सन्देश ।
हर नारी को नित मिले, भयमुक्त परिवेश।।
निर्मल धागा प्रेम का, है कितना मजबूत।
हर पल लगता बहन को , भैया है इक दूत।
रिश्ते मैले हो रहे, फिर भी है विश्वास।
भाई-बहिन के नेह का, उज्ज्वल है अहसास।
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सुन्दर भाव भरे बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !
रक्षा बंधन के पावन पर्व पर सभी को बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ !!
आदरणीय गिरीश पंकज जी बहुत भावपूर्ण दोहे !ये बहुत ही प्यारा लगा..
ReplyDeleteसूत्र नहीं यह रेशमी, भावों का अनुबन्ध।
भाई-बहिन का नेह है,ज्यों मधुरिम मकरंद।
हार्दिक बधाई ....बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ !!
आदरणीय पंकज जी बहुत उम्दा सृजन के लिए हार्दिक बधाई
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