ज्योत्स्ना प्रदीप
1
गुरु वशिष्ठ
साक्षात्
सदा है इष्ट
पुण्य अभीष्ट ।
2
वो एक छवि
बनाये आदि कवि
साहित्य -रवि ।
3
तुलसीदास
श्रद्धा भक्ति का बनें
मीठा- सा
हास ।
4
श्रवण -मन
दशरथ -समय
भूल से बींधे
5
वो एक कोख
माँ में बसा साकेत
दिव्य आलोक।
6
श्री राम- जन्म
ऋणी हुई आजन्म
माँ वसुंधरा।
7
ताड़का -भार
मर्यादा पुरुष वे
करें उद्धार
!
8
उर -अहल्या
इस ओर अभी तक
राम न आए
।
9
तेरी छुअन
है कितनी पावन
स्तब्ध गगन !
10
सिय का उर
झंकृत राम -ध्वनि
बाजे नूपुर
।
11
धनुष- भंग
सूर्य- किरण -संग
नवल रंग ।
12
एक वचन
अनगिन नयन
बने सागर
13
हाय वो पल
अयोध्या थी तरल
समय -छल।
14
वन सघन
सिय ,राम ,लखन
भरी उजास ।
15
विदा पिता की
न देख सके राम
अग्नि चिता की ।
16
झुक सम्मान
पात भरत
देते,
प्रसून राम ।
17
अनोखा प्यार
पद पादुकाएँ ले
राज्य का भार ।
18
भोली- सी
हठ
श्री राम के चरणों
पड़े केवट ।
19
वो स्वर्ण -मृग
भिगो गया नयन
सौम्य-सुभग ।
20
वो एक रेखा
करके अनदेखा
ये भाग्य -लेखा !
21
वो पर्णकुटी
सूनी बिन
वैदेही
थी लुटी-लुटी ।
22
वो दम्भी भाल
पुनीता के अश्रु ने
लिखा था काल
23
नारी -सम्मान
देह त्यागे गरुड़
खूब प्रणाम !
24
कमल नेत्र
बने है
नदियों के
सजल क्षेत्र ।
25
राम- का उर
वैदेही- विरह से
सूना विग्रह ।
26
टूटे है धीर
रोते
हैं रघुवीर
जानों तो पीर ।
27
लखन के नीर
संतप्त समय में
हुए अधीर ।
28
एक शबरी
बनी भरी गगरी
बिन राम के ।
29
बेरों में बसी
वो श्रद्धा शबरी की
सजल हँसीं।
30
हे हनुमंत
श्रीराम से मिले थे
प्रीत अनंत ।
31
तैरे पत्थर
लिखा थ राम नाम
बड़ा सुन्दर !
32
करुणा बहे
खग विहगों में भी
वो कवि कहें ।
33
भालू ,वानर,
मानव मिलकर
विजय- ओर ।
34
एक शक्ति
स्वयं प्रभु से भी
पुजती रही ।
35
एक वो सेतु
बनाया था
पुण्य की
विजय हेतु ।
36
लंका -प्रवेश
करते हनुमान-
‘जय श्री राम ‘
37
है लंका
स्वर्ण
ये
किसके आँगन
तुलसी -पर्ण
!
38
अशोक- तले
विरह -अगन में
वैदेही जले ।
39
एक तिनका
दुःख में कवच था
हर दिन का ।
40
लो तार -तार
रावण -अहंकार
सिया समक्ष ।
41
संत कपीश
माता जानकी उन्हें
देतीं आशीष ।
42
महासमर
विभीषण -वानर
हैं राम संग ।
43
था दम्भ ध्वस्त
श्री राम ऋणी तेरा
जग समस्त ।
44
मन -रावण
फूँक कर तो देखो
तभी उत्सव ।
45
पीड़ा है भारी
अग्नि परीक्षाएँ
अब भी जारी ।
46
दीप मुस्काए
तम का पलायन
श्रीराम आएँ ।
47
हर धाम की
मर्यादा श्री राम की
दीप्त दीप -सी
।
48
धोबी का मान !
राम तुम्हें जग की
है राम -राम ।
49
राम ने किया
आदर्शों से
हवन
स्वाहा इच्छाएँ
।
50
ये कैसी विदा
संतप्त
वैदेही की
न सुनी निन्दा ।
51
किसने छीनी
सुगंध सुमनों की
वो भीनी -भीनी।
52
एक सरयू
हृदय से बही तो
राम पुकारे ।
53
हाँ राम रोते
पर अयोध्यावासी
चैन से सोते ।
54
सिय के मन
बसे रघुनन्दन
सूना -सा वन ।
55
प्रणय -मोती
सीप-गर्भ को देते
तम में ज्योति ।
56
ऐसी समाई
पुनीता धरती में
फिर न आई ।
57
दो प्यारे नग
अयोध्या के कोष को
मिले सुभग ।
58
सूखी सरयू
राम ने न तोड़ी
जल समाधि।
59
हे राम सिय
मर्यादा ,शुचिता का
दे दो अमिय ।
60
पूजो राम तो
मन अभिराम हो
अविराम हो ।
61
रावण जलें
मन में हों जितने
जयी अयोध्या ।
-0-
अद्भुत ज्योत्स्ना जी । हार्दिक बधाई
ReplyDeleteइस महती प्रयास के लिए ज्योत्स्ना जी को ह्रदय से बधाई ! आनंददायक हाइकु। जय श्री राम
ReplyDeleteहाईकू के माध्यम से रामकथा स्वयं में एक चुनौती है।
ReplyDeleteज्योत्सना जी का उम्दा सृजन बधाई!!
दशहरे की पावन शुभकामनाएं
मनभावन श्रारीम कथा हाइकु...ज्योत्सना जी को हार्दिक बधाई सुन्दर सृजन के लिए !
ReplyDeleteहाइकु के माध्यम से श्री राम की कथा सुंदर लिखी है ,ज्योत्स्ना जी बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
हाइकु में राम कथा का सफल - सार्थक - सुंदर प्रयोग .
ReplyDeleteज्योत्स्ना जी बधाई |
वाह! हाइकु लड़ी में पिरोई अद्धभुत राम कथा।
ReplyDeleteज्योत्स्ना जी विजय पर्व की हार्दिक मंगलकामनाएँ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास है.. हर हाइकु की स्वतन्त्र सत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखने की भरसक कोशिश की गई है. जहां तक यह संभव हो सकता है, हुआ है. ज्योत्स्ना प्रदीप की कोशिश को सलाम सुरेन्द्र वर्मा
बहुत सुंदर प्रयास ज्योत्स्नाजी बधाई।
ReplyDeleteअदभुत है यह रामकथा...| हाइकु के माध्यम से किए गए इस सराहनीय प्रयास के लिए मेरी हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteaadarniya himanshu ji ka hridy se abhaar ,meri rachna ko yahan sthaan dene ke liye saath hi
ReplyDeleteaadarniya surendra verma ji ka bhi hridy se abhaar !
tahe dil se abhaar hai aap sabhi ka - anita ji ,sushila ji ,purnima ji rita ji ,pushpa mehra ji , manju ji ,krishna ji ,sudarshan ji evam priyanka ji .
aap sabhi ka protsahan badi hi anmol nidhi hai mere liye .
ज्योत्स्ना प्रदीप जीआप की समर्थ लेखनी ने सुन्दर अद्भुत सृजन किया है राम कथा के हाइकु मणके बना कर ।भक्ति की सुर सरिता बहा दी । कुछ और जुड़ जाते तो एक सौ आठ मणकों की सुन्दर जप माला बन जाती ।बहुत बहुत शुभ कानायें भरी बधाई ।
ReplyDeleteहाइकु के माध्यम से राम कथा कमाल किया है आपने ज्योत्स्ना जी
ReplyDeleteबधाई
ज्योत्सना जी ,हाइकु में इतनी सुन्दर राम कथा का वर्णन किया है |हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteज्योत्सना जी
ReplyDeleteअद्धभुत सुंदर राम कथा का वर्णन. हार्दिक बधाई और शुभकामनाय
उषा बधवार
tahe dil se abhaar hai aap sabhi ka - kamla ji ,manjusha ji ,savita ji ,shilpa ji ....is sneh ko isi tarah banaye rakhiyega ...punh abhaar !
ReplyDeleteअद्भुत सृजन है ..ज्योत्स्ना जी ...मन भावविभोर हो गया ...आपके नाम का थोड़ा सा असर मुझमें भी आ जाए ..आज तो बस यही कामना है मेरी ...हृदय से बधाई सखी !
ReplyDeleteaapke ujale evam mahaan hridy ka parichy deti hai aapkee ye tippani jyotsna ji .....aap svyam his shakt rachnakar hain ... bahut sunder likhti hain ...bas ye sneh evam pyaar hamare madhy isi tarah bana rahe ..hridy se naman aapke nirmal hridy ko ...
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