1-सुनीता पाहूजा
पैदा करे उलझन
ये अपनापन
खुशी देने को अपनों को
मारते रहते अपना मन,
उनकी खुशी बन जाती
जब अपना जीवन
ख़त्म हो जाती
तब सब उलझन
-0-
परिचय-
सुनीता पाहूजा
दिल्ली
विश्वविद्यालय से वाणिज्य में स्नातकोतर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से हिंदी स्नातकोतर, अन्नामलई विश्वविद्यालय से बी.एड।
वर्तमान में केंद्र सरकार के राजभाषा विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत ।
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिडाड
एवं टुबैगो, वेस्ट इंडीज़ में जुलाई 2010 से जुलाई 2013
तक द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति) के पद पर रहते हुए हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया,इस दौरान द्विमासिक गृह-पत्रिका ‘यात्रा’ का
सम्पादन कार्य किया ।
समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कविताएँ प्रकाशित ।
सम्प्रति-सहायक निदेशक,केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, गृह मन्त्रालय
2-सुदर्शन रत्नाकर
आपाधापी
जीवन है उलझा
ज्यों
कटी पतंग की डोर
नहीं जुड़े
जितना सुलझाओ
उतनी उलझे।
-0
3-कुमुद बंसल
न मैंने चुना
न मैंने बुना
फिर क्यों लिखा गया
मेरे लिए ही रचा गया
उलझनों का जाल
मेरी उम्र के भाल
जीवन कँकरीला
क्यों मुझे मिला
क्या करूँ उपाय
समझ भी न आए
कुछ करना होगा
भेदना होगा जाल
लगा कोई युक्ति
पा लें मुक्ति ।
-0-
4-सविता अग्रवाल ‘सवि’
किरण का
इंतज़ार
सूर्य किरण
सूर्य की पहली किरण
छुपती छुपाती,
परदे के पीछे से
कमरे में आकर मेरी
उनींदी पलकें चूमती
मुझे हौले हौले उठाती
कभी गाल थपथपाती
कभी बाल सहलाती
माँ, सी बन के वह मेरे
पास बैठ ही जाती
और तब तक प्यार करती
जब तक मैं बिस्तर छोड़
उठ नहीं जाती
सुनहरी नयी किरणों से वह
मेरा परिचय कराती
मैं भी उनके साथ
घुल मिल जाती
दिन भर मस्ती से घूमती
संध्या को उन किरणों के छिपने पर
थक कर, रात की चादर में लिपट
निद्रा की गोद में आ,
चुपचाप अगली किरण का इंतज़ार करती |
-0-
अपनापन ,आपाधापी और उलझनों के जाल भरी ज़िंदगी से गुजरती , सुलझन भरी किरणों के साथ खेलती बहुत सुन्दर रचनाएँ !
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
अपनापन ,आपाधापी और उलझनों के जाल भरी ज़िंदगी से गुजरती , सुलझन भरी किरणों के साथ खेलती बहुत सुन्दर रचनाएँ !
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
सुनीता जी बहुत प्यारी बात कही है आपने ,उनकी खुशी जब बन जाती अपना जीवन, ख़त्म हो जाती तब सब उलझन |हार्दिक बधाई |कुमुद और सुदर्शन जी आपको भी बधाई |
ReplyDeleteधन्यवाद सविता जी
Deleteअपनेपन के मायने ही यही हैं शायद ! स्त्रियों से ज़्यादा इस बात को और कौन समझ सकता है सुंदर भाव प्रस्तुति सुनीता जी !
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी में बस उलझनें ही हाथ में रह जाती हैं सुंदर पंक्तियाँ सुदर्शन दीदी।
उलझनों के जाल में जकड़ी हुई ज़िंदगी का दर्द बख़ूबी बयान किया है आपने कुमुद जी -बहुत सुंदर !
सूर्य की पहली किरण सच में माँ के कोमल स्पर्श सी होती है -सुंदर लिखा आपने सविता जी।
आप सभी को हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
धन्यवाद अनिता जी
Deleteकविता की पंक्तियाँ पसंद करने पर आप सभी का आभार |
ReplyDeletesahi kaha aapne sunita ji apnepan ka yahi arth hai ..sundar bhaav prastuti !
ReplyDeletesudarshan didi! sach ! uljhane hi saath rah jaati hai ...... kya baat hai ! .kisi yukti se hi mukti milegi jo hamen hi talaash karnee hai..bahut khoob kumud ji !aur savita ji sury ki pahli kiran ma ka sparsh hi to hai bahut hi pyara kaha aapne ,,,aap sabhi rachnakaron ko dil se badhai !
धन्यवाद ज्योत्सना जी
Deletebahut achha likha aapne bahut bahut badhai...
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