पथ के साथी

Saturday, September 5, 2015

कान्हा से संवाद



शशि पाधा

वर्षों पाली मन में उलझन
झेला वाद विवाद
सोचा अब तो कान्हा तुमसे
हो सीधा संवाद।

प्रतिदिन जो घटता धरती पर
 नारद देते खबर नहीं ?
चीरहरण या कुकर्मों का
देखा ना कोई डर कहीं
भूल गये क्या कथा द्रौपदी
 या है कुछ कुछ याद।

बारम्बार पढ़ा गीता में
तुम हो अन्तर्यामी
कहाँ छिपे थे तुम जब
होती लज्जा की नीलामी
लूँगा मैं अवतार वचन का
सुना नहीं अनुनाद

तुमने तो इक बार दिखाई
मुहँ में सारी सृष्टि
बन बैठे थे पालक पोषक
अब क्यों फेरी दृष्टि
 क्या जिह्वा पर अब तक तेरे
माखन का ही स्वाद।

अब क्या कहना कान्हा तुमसे
आओ तो इक बार
पापों की गगरी अब फोड़ो
कुछ तो हो उपकार

 बंसी की तानों में कब से
 सुना ना अंतर्नाद।
-0-

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर एवं सामयिक रचना है शशि जी ! कान्हा तक अापका यह संवाद पहुँचे यही कामना है

    इसी सन्दर्भ मे पिछली जन्माष्टमी पर लिखी मेरी एक रचना की ये पंक्तियाँ भी देखिये

    1.

    कहाँ हो कान्हा
    अब आ भी जाओ ना
    काटे नहीं कटते
    तुम्हारे बिना
    दुःख इस धरा के
    ले ही लो अवतार

    2.

    कान्हा
    अाज
    फ़िर से छिड़ा है
    महाभारत का युद्ध
    अौर
    दांव पर लगी है
    संबंधों की अस्मिता
    बचा सको… तो बचा लो

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    1. धन्यवाद मंजु जी | और एक और संवाद के लिए आपको बधाई

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  3. अब क्या कहना कान्हा तुमसे
    आओ तो इक बार
    पापों की गगरी अब फोड़ो
    कुछ तो हो उपकार.......................मार्मिक पुकार ... मन को गहरे तक छू गई | बधाई शशिजी और धन्यवाद भैया इतनी अच्छी रचना को अपने blog पर सांझा करने के लिए

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    1. कमला जी आपका आभार | बस पुकार भी उसी को सकते हैं जिस पर भरोसा हो | प्रभु तो सुनेंगे ही |

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  4. समयोचित, बहुत सुन्दर रचना....बधाई शशि जी!

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  5. बहुत ही सुन्दर सम सामायिक भावो भरी रचना ......

    अब क्या कहना कान्हा तुमसे
    आओ तो इक बार
    पापों की गगरी अब फोड़ो
    कुछ तो हो उपकार

    बंसी की तानों में कब से
    सुना ना अंतर्नाद।.....सच्ची पुकार .....अब भी नहीं सुनेंगे कान्हा तो कब सुनेंगे ...हार्दिक बधाई आपको !
    आदरणीय भैया जी एवं समस्त सहज साहित्य परिवार को जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ !

    सादर नमन के साथ
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  6. बारम्बार पढ़ा गीता में
    तुम हो अन्तर्यामी
    कहाँ छिपे थे तुम जब
    होती लज्जा की नीलामी
    ‘लूँगा मैं अवतार’ वचन का
    सुना नहीं अनुनादbahut sundar v saamyik rachna! aaj ke din ye padhi to lag raha hain bus ab der nahin hai..kanha ye pukaar zaroor sunenge....shashi ji ..haardik badhai itni pyari rachna ke liye...samast sahaj sahity parivaar ko janmashtmi ki haardik badhai v shubhkaamnayen!

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  7. bahut sunder navgeet hai. mere vichar se:radha sa prem ho, ho gopi si bhakti \ sudama si maitri ho\ ho nand- yashoda ka sa vatsalya \
    draupdi sa bhav ho \ ho na koi duja\bahkt ke vash honge prabhuvar \ kan- kan mein base jo \ek na ek din ayenge avashya. chhod den duvidha unake hone na hone ki.
    shashi ji apka likha navgeet, jo bhavavihval man ki ulahana bhari pukar hai, padh kar mere man mein jaise bhi bhav janme maine likhe hain . asha hai ap ise anyatha nahin lengi. sunder samayochit geet hetu apako badhai.
    pushpa mehra.

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  8. अब क्या कहना कान्हा तुमसे
    आओ तो इक बार
    पापों की गगरी अब फोड़ो
    कुछ तो हो उपकार

    बंसी की तानों में कब से
    सुना ना अंतर्नाद।
    Bahut achha likha aapne bahut bahut badhai...

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  9. aaj ki ythaarth sundr sndeshaatmk git .

    badhai

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  10. कितनी सुन्दर पंक्तियों में सारी मनोव्यथा व्यक्त कर दी है आपने...| ऐसी ह्रदय-प्रिय रचना के लिए मेरी बहुत बधाई...|

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  11. शशि जी खूबसूरत संवाद रचे हैं आपको हार्दिक बधाई | मंजू मिश्रा जी की भी कान्हा को पुकार बहुत सुन्दर लगी | आपको भी बधाई |

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  12. Aap sab kaa haardik abhar. maine Kanha ko apna mitr maan kar guhar lgai thi. Vo to antaryami hain , sab jante hain. Mere pita kahte the, "ptr likho to Voh uttar dega"| Yani use man ki btaao.| Rameshwar Bhaiya ka dhanyvad ise aap sab tak pahunchane ke liye.

    Saadar,

    Shashi Padha

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  13. sundar shabd vinyas evam bhavabhivyakti,

    Dr. Kavita Bhatt

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  14. बहुत ही सुंदर रचना ! एक-एक पँक्ति में रसभरा है-पुकार कहीं गहरे मन में उतर गई ! कान्हा ने भी अवश्य ही सुनी होगी !
    हार्दिक बधाई आपको शशि जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  15. शशि पाधा जी आप का नव गीत बहुत सुन्दर लगा।
    हार्दिक बधाई। जैसे देश की आत्मा आप के शब्दों में कृष्णा को पुकार रही है। उन्हें आना ही होगा।
    जन्माष्टमी की सब को बधाई। जरा देर से दे रही हूँ। फिर भी स्वीकारें।

    मैं भी कुछ कहना चाहती हूँ -

    ओ चक्रधर !
    छोड़ो शेष शयन
    फैला अधर्म
    नित चीर हरण
    हैं बढ़े दुशासन।


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  16. कमला जी, मेरी पुकार के साथ आप सब की पुकार के स्वर मिल गये और अब यही आशा है कि चक्रधर अपना चक्र चलाएँ | आपका तथा सभी गुणीजनों का ह्रदय से आभार | इस रचना को इतना मान मिला, मैं अनुगृहीत हुई |

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