1-नहीं छू पाती तुम्हें
अनिता मण्डा
तुम दूर कहीं चमकते हो
आसमान के सीने पर
आना चाहती हूँ तुम तक उड़कर
हाथ उठाती हूँ हवा में पूरे वेग से
पर पैर रहते हैं धरती से चिपके
नहीं छू पाती तुम्हें।
मन की नदी में
ढूँढती हूँ तुम्हारा अक़्स
उतर जाती हूँ गहराई में
तुम्हें पाने
पर तभी नदी के
पानी में छुपे हुए
अनगिनत ज़हरीले नाग आकर
दंश मारने लगते हैं।
मेरा पोर-पोर दर्द से भर जाता है
मैं तड़प उठती हूँ।
नदी सिहर उठती है
मेरी सिसकियों से
तभी एक फूल की
महक से भरी हवा
छू लेती है
नदी के पानी को
सारे नाग मिल गूथ जाते हैं
जाल में बाँध मुझे
ले आते हैं किनारे
धीरे-धीरे मेरी सिसकियाँ
बन जाती हैं हिचकियाँ
फिर यही लगता है
तुम ऊपर आसमान में
मुझे याद कर रहे हो
बुलाना चाहते हो अपने पास
मैं भी आना चाहती हूँ तुम्हारे पास
उठाना चाहती हूँ तुम्हें गोद में
छूना चाहती हूँ तुम्हें
कैसा होगा तुम्हारा कोमल
मधुर प्रथम स्पर्श
प्रतीक्षा है मुझे हर पल
उस पल की।
-0-
2-सुनीता अग्रवाल
1-प्रेमसाधना
हद से गुजर जाते है
जब ख्यालों में तुम्हारे
गूँगे हो जाते है अल्फ़ाज़
छिप जाते है गहराई में
कही गहरे सागर में
की डाले न विघ्न
कोई आवाज़
इस प्रेम साधना में ।
-0-
2-यादें
यादें नही
गेसुओं में उलझी
जल की नाजुक बूँदें
कि
झटक दूँ
और बिखर जाएँ ।
-0-
अवाक् करती ..बेहद भाव पूर्ण रचनाएँ तीनों !
ReplyDeleteअपने कोमल स्पर्श से मन को द्रवित कर गईं ...अनिता जी और सुनीता जी को बहुत-बहुत बधाई !
मन को छूती बहुत ही सुन्दर कविताएं! अनीता जी, सुनीता जी हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteभाव संसिक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteनहीं छू पाती तुम्हें Bahut bhavpurn rachna hai ye meri shubkamnaye...
ReplyDeletesunita ji ki bhi rachnayen achhi lagi unko bhi badhai....
ज्योत्स्ना जी,कृष्णा जी, वीरेंद्र कुमार शर्माजी,भावना जी
ReplyDeleteआप सभी का भु बहुत आभार।
दर्द में पगी कविता 'नहीं छू पाती तुम्हें'' बहुत गहरे दिल में उतर गई !
ReplyDelete'प्रेम साधना' व 'यादें' भी बहुत सुंदर !
अनीता मण्डा जी एवं सुनीता अग्रवाल जी आप दोनों को हार्दिक बधाई !
~सादर
अनिता ललित
bahut hi sunder rachanayen hain anita ji va sunita ji badhai.
ReplyDeleteबहुत हे सुंदर भावों से रची पंक्तिया ।
ReplyDeleteoh marmshprshi rachna anita ji ..
ReplyDeleteधीरे-धीरे मेरी सिसकियाँ
बन जाती हैं हिचकियाँ
फिर यही लगता है
तुम ऊपर आसमान में
मुझे याद कर रहे हो
बुलाना चाहते हो अपने पास
मैं भी आना चाहती हूँ तुम्हारे पास
उठाना चाहती हूँ तुम्हें गोद में
छूना चाहती हूँ तुम्हें
कैसा होगा तुम्हारा कोमल
मधुर प्रथम स्पर्श
प्रतीक्षा है मुझे हर पल
उस पल की।
... sabhi gunijano ka hardik aahar meri rachna ko sarah kr utsaah vardhan karne ke liye :)
तुम दूर कहीं चमकते हो आसमान के सीने पर .....बहुत कोमल भाव लिए कविता है |अनीता जी और सुनीता जी आप दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteमन की गहराइयों तक जाती बेहद भावपूर्ण कविताएँ हैं ये...| अनीता जी और सुनीता जी, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...|
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