1- कृष्णा वर्मा
होता जो समय रेज़गारी सा
डालती रहती गुल्लक में
बचे छुट्टे पैसों की तरह
कर लेती ख़र्च
अपनी खुशियों के लिए
मिटा लेती तृषा
अपनों को मिलने की
भिगो आती पलकें
दुलार की फुहारों से
सँवार आती माँ-बाप के
दस अधूरे काम
बँटा देती अम्मा का हाथ
घर की साफ-सफाई में
सँजो देती अनचाहा सामान
बदल आती
माँ की उदासी खुशियों में
हल्का कर आती
उसकी छाती को सालता दुख
जुड़ा देती पिता की ऐनक
की टूटी कमानी
गँठवा लाती उनकी
जूतियों के तले
कुछ और समय चलने को
सिमटवा आती उनके
अधूरे हिसाब-किताब
बटोर लाती उनके
हौसले और अनुभवों की
अनमोल पूँजी
ले जाती छोटी बहन को
बाज़ार घूमाने
दिला लाती उसकी मन पसंद
चूड़ियाँ रिबन लहँगा-चोली
खिला लाती कुल्फी चाट-पकौड़ी
झुला लाती घुमनिया झूले पे
लडिया कर अम्मा से
फिर दोहरा आती अपना बचपन
भर लाती माँ के चौके की
सुगंध नथूनों में
जी आती सुख के कुछ क्षण
माँ की स्नेह- छाया में
पुतवा आती खुशियाँ
मन की दीवारों पर
खिल उठता
मेरी वीरानियों में भी
मोहक वसंत
बचा पाती जो थोड़ा सा समय
सरपट भागती जिन्दगी से।
-0-
2-गुंजन अग्रवाल
झाँका है दूर नभ से प्रेमी का
रूप बन के
निकला है आज चन्दा फिर देखो ये बन ठनके
भूलो गमों के नगमे जी भरके मुस्कुराओ
कर लो इबादतें तुम अरमाँ भी पूरे मन के ।
कृष्ण जी और गुंजन जी आप दोनों को सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteमायके की स्मृतियों को जीती ,भाव भरे मन की बहुत सुन्दर प्रस्तुति कृष्णा दीदी .....बधाई !
ReplyDeleteकिसी भी स्त्री का सुख दोनों घरों की खुशियों से जुड़ा है ..निःसंदेह !
बना -ठना चंदा बहुत सुन्दर है .गुंजन जी ..बहुत बधाई !!
dono rachnayen bahut sunder hain krishna ji va gunjan ji badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
bahut sundar .....yadon ke jharokhon se ...
ReplyDeleteभाव विभोर कर देने वाली कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर मुक्तक।
aankhe bhar aayee Krishna jee ki is adbhut rachana se..........jitani prashansha ki jay kam hai....
ReplyDeleteMuktak bhi sundar hain
dono kavyitriyon ko badhaiyan evam shubhkamnayen........
Kavita BHatt
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत आभार भाईसाहब!
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आप सभी स्नेही जनों का धन्यवाद!
कृष्णा दीदी ! आह भी और वाह भी! हर लड़की/बेटी की गुल्ल्क का ख़ज़ाना खोल दिया आपने ! मन भर आया ! यही तो हमारी अनमोल पूँजी है !
ReplyDeleteइस ख़ूबसूरत सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको !
गुंजन जी सुंदर मुक्तक के लिए बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
होता जो समय रेज़गारी सा
ReplyDeleteडालती रहती गुल्लक में
बचे छुट्टे पैसों की तरह
कर लेती ख़र्च
समय रेजग़ारी सा … एकदम नया-नया सा लगा, बहुत सुन्दर … बचपन की ढेरों खूबसूरत यादें समेटे हुये बहुत प्यारी सी रचना
ReplyDeleteकृष्णा वर्मा जी ,’होता जो समय’ कविता आप की बड़ी भावपूर्ण है माँ के घर की यादों से जुड़ी हुईं । वो यादें जिन में पुनः पुनः जीने को मन चाहे मगर समय नही होता है।सिर्फ कल्पना में ही जिया जा सकता है। उम्र हो जाने पर कई काम जो माता पिता खुद किया करते थे। बुढ़ापे में उन से नही हो पाता। वे भी बच्चों को उसी तरह चाहते हैं कोई बच्चा आये यह काम करवा जाये। बहुत ही अनोखे ढंग से तुम ने जो लिखा बहुत अच्छा लगा। हार्दिक वधाई।
होता जो समय रेज़गारी सा
ReplyDeleteडालती रहती गुल्लक में
बचे छुट्टे पैसों की तरह aadarniya krishna ji ko sadar naman ! aapki kavita behad bhaavpurn hai ....ye panktiyaan bahut hi sundarta v nayapan liye hai ...badhai ke saath -
gunjan ji ! aapka bana thana chanda nirala hai...aapko bahut -bahut badhai!
ReplyDeleteजी आती सुख के कुछ क्षण
ReplyDeleteमाँ की स्नेह- छाया में
पुतवा आती खुशियाँ
मन की दीवारों पर
खिल उठता
मेरी वीरानियों में भी
मोहक वसंत
बचा पाती जो थोड़ा सा समय
सरपट भागती जिन्दगी से।
Sachmuch Kash! Aisa ho pata aapki rachna bahut bhavpurn hai hardik badhai... Chanda par likhi rachna bhi achhi lagi dono ko hardik badhai...
krishna ji gunjan ji bahut sunder bhavon se bhare shabd hai aap dono ke
ReplyDeletebahut bahuut badhai aap dono ko
rachana
काश ! कोई ऐसी गुल्लक होती...| बहुत सुन्दर रचना...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteगुंजन जी, आपका मुक्तक भी बहुत भाया | बधाई |