ज्योत्स्ना प्रदीप
हरियाली की मोहक छवि
समृद्धि के थे आह्वान
रे !
हरे -भरे थे खेत
जहाँ
सूने-से हैं मकान रे !
बैलो की मधुर घंटियाँ
गीत धरा के गाती थीं
स्नेह भरी माँ बेटों को
रोटी- साग खिलाती थी
राजा मिडास जैसा तू
बना है क्यों धनवान रे ! 1
रोटी की पोटली लियें
धूप में आती नार थी ।
नयनो के काजल में भी
ठंडी छैया अपार थी ।
भरे थे जो अनाजों से ,
सिसकते है खलिहान रे । 2
गेहूँ की बालियाँ कभी
उसकी
बालियों से लड़ी
वो तकती तेरा रास्ता
चिनाब के किनारे खड़ी
माटी में कहीं दबे हुए
मैं ढूढ़ूँ वो निशान
रे ! 3
उसपर
जुल्म ये ढाया है
तू बसा कहीं
बिदेस रे
वो कैसा सोना रूप था
ये क्या बनाया भेस रे?
आजा तेरी बेबे के
उड़ने चले है प्राण रे ! 4
-0-
कोमल ,मधुर भावों भरा ,दृश्य साकार करता बहुत सुन्दर गीत !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी !!
ज्योत्सना जी का यथार्थवादी गीत परिवेशगत विसंगतियों को उजागर करता है ,हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
ReplyDeleteज्योत्सना प्रदीप जी को इतनी सुन्दर और मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसविता अग्रवाल "सवि"
bahut sundar geet!
ReplyDeletejyotsna Pradeep ji, abhinandan!
पंजाब की महक लिए सुंदर, भावपूर्ण गीत।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी।
~सादर
अनिता ललित
सुन्दर गीत मनमोहक सजीव चित्रण.....हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी!
ReplyDeletehimanshu ji ne meri rachna ko yahan sthaan diya aur aap sabhi ne ise saraha......naman ke saath -saath abhaar sabhi ka ....
ReplyDeletesadi sarl likhi rachna pasand aayi meri badhai...
ReplyDeleteअंत तक आते-आते आँखें नम हो गई...| बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...| हार्दिक बधाई...|
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