1
कहत-सुनत दुख आपने,बीत गई वो रात।
लेकर सुख-सन्देश फिर, आया नवल प्रभात ।
2
रोने से क्योंकर कटे,मन के
सारे क्लेश ।
अपने बेगाने हुए ,देश हुआ परदेश ।
3
करते-करते प्रेम का, अपनों
से इज़हार ।
थकित हुआ मन पा सका,नहीं किसी का प्यार ।
4
एक-एक ग्यारह हुए,ग्यारह
से फिर एक ।
और एक के फेर में कर दीन्हा
फिर एक ।
5
सोच-सोचकर देश की, मनवा है
बेचैन ।
कहाँ गए संस्कार वे,दिवस
कटे न रैन ॥
6
जो भी अच्छा ना लगे,उसका कर प्रतिकार ।
वो ही मारणहार है,वो ही पालनहार
।
7
जिसका जैसा आइना,उसका वैसा
अक्स ।
मत कर अनदेखा उसे, जो भी है प्रत्यक्ष ।
8
नारी की रक्षा करो ,कहते
बारम्बार ।
नारी-पीड़न के वही , असली
ज़िम्मेदार ।
9
किसने किसको क्या दिया ,
पूछत हैं सब लोग ।
उसने उसको वह दिया , जो है जिसके जोग ।
10
हँसते-रोते दिन कटा ,सोते-सोते रात ।
प्यार पला जब दिलों में
, गए समय की बात ।
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Kamal hai eak se badhakr eak bahut bahut badhai...
ReplyDeleteWah! kyaa baat hai!
ReplyDeleteसभी दोहे बहुत अच्छे !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आ. सावित्री चन्द्र जी !
~सादर
अनिता ललित
इतने प्रभावशाली दोहों के लिए हार्दिक आभार ! आशा करता हूँ कि आपकी और रचनाएँ पढ़ने का अवसर भी मिलेगा।
ReplyDeletebade hi sashakt dohe .aadarniy.savitri chandr ji ko sadar naman ke saath -saath badhai .
ReplyDeleteसुन्दर भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..प्रभावी दोहे !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !!
गहन भाव से भरे है ये दोहे...बधाई...|
ReplyDeleteजीवन का सार इन दोहों ने गाया है,
ReplyDeleteसहज जीवन को समझाया है।
सावित्री चन्द्र ji ki or se sabhi hardik aabha...
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