पथ के साथी

Monday, August 4, 2014

पुरवा में पन्ने उड़े



डॉ०ज्योत्स्ना शर्मा
 1
पग-पग पर दी वंचना , कटुक वचन के शूल ।
मुश्किल है जीना बड़ा  , बीती बातें भूल ।।
2
माथे का चन्दन हुई , उसके पग की धूल ।
मनुज मनुजता हित बढ़ा , केवल निज सुख भूल ।।
3
बीती बातें भूल कर , चलो मिला लें हाथ ।
जीवन भर क्या कीजिए ,नफ़रत लेकर साथ ।।
4
रिश्ते कल पूछा किए ,हमसे एक सवाल ।
खुद ही सोचो बैठ कर , क्यों है ऐसा हाल ।।
5
प्रेम पगी पाती लिखी , प्रेम रहे पहुँचाय ।
 प्रेम प्रेम से पढ़ रहा , प्रेम नयन बरसाय ।।
6
पुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब ।
कितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब ।। ..
7
दर्द,महफिलें याद कीं , खुशियों के  अरमान ।
 मुट्ठी भर औकात है , पर कितना सामान ।।
8
सहने को सह जाएँगे , पत्थर बार हज़ार ।
बहुत कठिन सहना हमें , कटुक वचन के वार ।।
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6 comments:

  1. डा. ज्योत्स्ना शर्मा के ये दोहे मन को छू गए।

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  2. पुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब कितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब …. sach me Jyotsana aapke dohe man mahka gaye…

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  3. बहुत अच्छी रचनाये है। अति सुन्दर

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  4. आप सबका हृदय से बहुत -बहुत आभार

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  5. डॉ ज्योत्स्ना शर्मा जी आपके सभी दोहे बहुत सार्थक हैं। हार्दिक बधाई !

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  6. पुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब ।
    कितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब ।। ..
    bahut khoob jyotsna ji ....sabhi dohe man ko choo gaye. sadar naman ke saath badhai.

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