डॉ०ज्योत्स्ना
शर्मा
1
पग-पग पर दी वंचना , कटुक
वचन के शूल ।
मुश्किल है जीना बड़ा
, बीती बातें भूल ।।
2
माथे का चन्दन हुई , उसके
पग की धूल ।
मनुज मनुजता हित बढ़ा , केवल
निज सुख भूल ।।
3
बीती बातें भूल कर , चलो
मिला लें हाथ ।
जीवन भर क्या कीजिए ,नफ़रत
लेकर साथ ।।
4
रिश्ते कल पूछा किए ,हमसे
एक सवाल ।
खुद ही सोचो बैठ कर , क्यों
है ऐसा हाल ।।
5
प्रेम पगी पाती लिखी , प्रेम
रहे पहुँचाय ।
प्रेम प्रेम से
पढ़ रहा , प्रेम नयन बरसाय ।।
6
पुरवा में पन्ने उड़े , पलटी
याद किताब ।
कितना मन महका गया , सूखा
एक गुलाब ।। ..
7
दर्द,महफिलें याद कीं , खुशियों के
अरमान ।
मुट्ठी भर औकात
है , पर कितना सामान ।।
8
सहने को सह जाएँगे , पत्थर
बार हज़ार ।
बहुत कठिन सहना हमें , कटुक
वचन के वार ।।
-0-
डा. ज्योत्स्ना शर्मा के ये दोहे मन को छू गए।
ReplyDeleteपुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब कितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब …. sach me Jyotsana aapke dohe man mahka gaye…
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचनाये है। अति सुन्दर
ReplyDeleteआप सबका हृदय से बहुत -बहुत आभार
ReplyDeleteडॉ ज्योत्स्ना शर्मा जी आपके सभी दोहे बहुत सार्थक हैं। हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteपुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब ।
ReplyDeleteकितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब ।। ..
bahut khoob jyotsna ji ....sabhi dohe man ko choo gaye. sadar naman ke saath badhai.