मनोज कुमार श्रीवास्तव ‘मनु’
जो प्राणदायिनी जीवनरेखा है
जो बहती है,
हिमालय से गंगासागर तक
जो नदी नहीं
,सभ्यता है हिंदुस्तान की
जो पतितपावनी है जहान की
जो जलमात्र नहीं
,अमृत है
माँ है
,जो भारत महान् की
नाम है गंगा उसका
कर्त्तव्य हो हमारा सर्वोपरि
यही दृढ़ संकल्प आधार हो
अस्तित्व बचाना उसका
हमारा कार्य है;
अगर जीवित रहना है
तो गंगा का निर्मल रहना
अपरिहार्य है ।
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आपकी लिखी रचना शनिवार 02 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी.........
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सही कहा आपने
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
वाह, बहुत बढ़िया, उत्कृष्ट
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
Deletebahut khoobsurat bhaav ma ganga ke liye...naman hai aapki rachna ko..
ReplyDeleteबहुत सामयिक...सुन्दर रचना...बधाई...|
ReplyDeleteAcchhi rachna...
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