अनिता ललित
1
चढ़ो ... तो आसमाँ में चाँद की तरह....
कि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको....!
कि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको....!
2
काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात हँसना....
बिन बात हँसना....
खिलखिलाना...
हर चोट पे जी भर के रोना.......!
हर चोट पे जी भर के रोना.......!
3
बनकर जियो ऐसी मुस्कान...
कि.. हर चेहरे पर खिलकर राज करो.. !
न बनना किसी की... आँख का आँसू..
कि गिर जाओ .. तो फिर उठ न सको...!
न बनना किसी की... आँख का आँसू..
कि गिर जाओ .. तो फिर उठ न सको...!
4
दिल की मिट्टी थी नम...
जब तूने रक्खा पाँव...,
अब हस्ती मेरी पथरा गई..
बस! बाकी रहा .. तेरा निशाँ !
5
मुझे पढ़ो......
तो ज़रा सलीके से पढ़ना...
ज़ख़्मों के लहू से लिखी....
अरमानों की ताबीर हूँ मैं...!
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चढ़ो ... तो आसमाँ में चाँद की तरह....
ReplyDeleteकि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको….! …. bahut hi sundar kshanikayen hain …. mujhe yah sabse jada pasand aayi …. isme ek bahut hi sakaratmak sandesh hai …. chadho to bhi shaan se aur dhalo to bhi shaan se …. ek garima ke saath ….
अनुपम क्षणिकाएँ हैं अनिता जी ...आसमाँ की ऊँचाई भी और सागर की गहराई भी !
ReplyDelete......लाजवाब है "बचपन सुहाना "बिन बात हँसना ...खिलखिलाना ..हर चोट पे जी भरके रोना !
अप्रतिम मुस्कान और आँसू !!..और .....
मुझे पढ़ो......
तो ज़रा सलीके से पढ़ना...
ज़ख़्मों के लहू से लिखी....
अरमानों की ताबीर हूँ मैं...!....आह भी और वाह् भी ..बहुत बधाई आपको !!
"हस्ती मेरी पथरा गई बाकी रहा निशाँ ", बहुत खूब !
Deleteमुझे पढ़ो......
ReplyDeleteतो ज़रा सलीके सेपढ़ना...
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं अनिता जी भावनाओं के शब्दों से गुथी हुई... बधाई।
"हस्ती मेरी पथरा गई बाकी रहा निशाँ ", बहुत खूब !
ReplyDelete"हस्ती मेरी पथरा गई बाकी रहा निशाँ ", बहुत खूब !
ReplyDeleteएक एक क्षणिका हृदय से निकली ....बहुत सुंदर ,अनीता जी ...!!
ReplyDeleteमुझे पढ़ो......
ReplyDeleteतो ज़रा सलीके से पढ़ना...
ज़ख़्मों के लहू से लिखी....
अरमानों की ताबीर हूँ मैं...! kyaa panktiyaan hain! dil ko chune vaalii, hridy me prvesh krne vaalii, motiyon ki bauchhar krnevaalii . mn chkit rh gyaa. Shiam Tripathi
क्या क्षणिकाएं लिखी हैं आखिर वाली तो बेमिसाल है अनीता जी....हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए .... आप सभी का हृदय से बहुत-बहुत आभार! :)
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
Bahut achchha likha hai aapne hardik badhai...
ReplyDeletebahut hi sundar kavita hai. aaj se mai roj aapke blog mai visit karna pasand karunga
ReplyDeleteaap bahut hi acchi lekhika hai, please keep it up
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का दिल से बहुत-बहुत आभार ..:-)
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं है अनीता जी. मज़ा आ गया
ReplyDeleteदिल से लिखी बहुत भावपूर्ण क्षणिकाएँ...दिल तक ही पहुँची...|
ReplyDeleteइस एक क्षणिका में व्यक्त इच्छा तो शायद सब की होगी...
काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात हँसना....
खिलखिलाना...
हर चोट पे जी भर के रोना.......!
हार्दिक बधाई...|
प्रियंका