पथ के साथी

Thursday, April 5, 2012

पीर- तरी(चोका)


 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

पीर-तरी से
निकले सागर में
तुमसे कैसे
अपने दु:ख बाँटूँ !
घोर अँधेरा
पथ है अनजाना
बोलो कैसे मैं
दर्दीले पल काटूँ ।
जितने मिले
हमें प्राण से प्यारे
न चाहकर
वे हर बाजी  हारे
गहन गुफ़ा
पग-पग है खाई
कैसे इनकी
गहराई पाटूँ !
जो दिखते हैं
महामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
रोती दीवारें
सन्तापों की हिचकी
लाक्षगृह में
घिरे जीवन भर
बूँद-बूँद को
तरस गए तुम
सुने न कोई
सागर -सी गाथा
दूँ प्यार किसे ?
सब पर पहरा
हर द्वारे पे
है सन्नाटा गहरा
कोई न बूझे
जले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ  ।
-0-

23 comments:

  1. आज की दुनिया का सत्य...

    जो दिखते हैं
    महामानव ज्ञानी
    उनकी लाखों
    हैं कपट कहानी

    बहुत अच्छी और सारगर्भित रचना, बधाई.

    ReplyDelete
  2. रोती दीवारें
    सन्तापों की हिचकी
    लाक्षगृह में
    घिरे जीवन भर

    सत्य को कहती खूबसूरत रचना ....

    ReplyDelete





  3. आदरणीय रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी
    प्रणाम !

    दूँ प्यार किसे ?
    सब पर पहरा
    हर द्वारे पे
    है सन्नाटा गहरा
    कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ ।

    आपका प्रत्येक गीत/नवगीत , हर प्रकार का छंद … मन छू लेता है…
    इस रचना के लिए भी साधुवाद!

    *महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
    की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  4. जो दिखते हैं
    महामानव ज्ञानी
    उनकी लाखों
    हैं कपट कहानी

    आज जहाँ धन लोभी हो गया है मनुष्य ...ज्ञान कि गठरी बनाये ,चिराग तले अँधेरा ....कितनी गहरी सच्चाई लिख दी अपने ....
    बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें ....

    ReplyDelete
  5. मन की पीड़ा आप बहे है।

    ReplyDelete
  6. कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ ।

    निर्मल और निष्कपट अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर रचना|

    ReplyDelete
  7. लाक्षगृह में
    घिरे जीवन भर
    भैया जीवन इसके सिवा और है ही क्या कितना सुंदर सोचा है आपने आपका लिखा जब भी पढ़ती हूँ हमेशा कुछ न कुछ सीखती हूँ
    सादर
    रचना

    ReplyDelete
  8. घोर अँधेरा
    पथ है अनजाना
    बोलो कैसे मैं
    दर्दीले पल काटूँ ।

    bahut gahan abhivyakti hai in panktiyon men,gahan peeda ,gahan soch bahut2 badhai...

    ReplyDelete
  9. ज्योत्स्ना शर्मा06 April, 2012 21:49

    बहुत सरल शब्दों में बहुत ही गहरे भावों को अभिव्यक्त किया है आपने.....हर पंक्ति एक से बढ़ कर एक...मेरा सादर नमन ...!

    ReplyDelete
  10. जीवन का हुबहू रूप प्रस्तुत किया है आपने,बेहद करीब-बेहद गहन ....

    ReplyDelete
  11. जो दिखते हैं
    महामानव ज्ञानी
    उनकी लाखों
    हैं कपट कहानी
    कितना सच लिखा है...|

    दूँ प्यार किसे ?
    सब पर पहरा
    हर द्वारे पे
    है सन्नाटा गहरा

    बहुत भावपूर्ण है...| बहुत बधाई...|
    प्रियंका

    ReplyDelete
  12. कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ ।
    भावपूर्ण सुन्दर रचना
    सादर
    कृष्णा वर्मा

    ReplyDelete
  13. कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ
    जीवन चक्र उसकी मजबूरियां और दर्द का सजीव चित्रण किया है आपने भाईसाहब..............आपकी हर एक रचना से मैं सिखाती हूँ.....
    धन्यवाद,
    अमिता कौंडल

    ReplyDelete
  14. jab kahta tha pulak nadi ki, sunte rahe taraane .jabse peer kahi hai maine, kahan gaye sab jaane?

    ReplyDelete
  15. गहन भाव लिए हुए है यह चोका,जीवन का कड़वा सच शब्दों में पिरोकर पन्नों पर उतरना तो कोई रामेश्वर जी से सीखे ....
    कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ ....
    और अंतिम पंक्तियाँ जीवन की उस सच्चाई को ब्यान करती हैं जिसका सामना हम सब प्रतिदिन करते हैं |
    बहुत बधाई !
    हरदीप

    ReplyDelete
  16. कोई न बूझे
    जले मन की ज्वाला
    राह न सूझे
    किस -किस पथ के
    मैं सब काँटे छाँटूँ ।..........waah bahut sunder .sabhi shandar
    hardik badhai

    ReplyDelete
  17. गहन गुफ़ा पग-पग है खाई कैसे इनकी गहराई पाटूँ !
    अन्तर्मन के सन्नाटों को भेदती शब्दावली इस अभिव्यक्ति की जान है

    ReplyDelete
  18. namaskar himanshu ji

    waah bahut sunder chokha hai

    mujhe samajh me aa gaya . hardik abhar aapka .

    ReplyDelete
  19. बहुत सुंदर कविता..

    ReplyDelete
  20. जो दिखते हैं
    महामानव ज्ञानी
    उनकी लाखों
    हैं कपट कहानी
    रोती दीवारें
    सन्तापों की हिचकी
    लाक्षगृह में
    घिरे जीवन भर
    जीवन के अनुभवों को इतना सुन्‍दर अभिव्‍यक्‍त आप सा संवेदनशील
    व्‍यक्ति ही कर सकता है। बहुत ही सुन्‍दर कविता ।

    ReplyDelete