रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
पीर-तरी से
निकले सागर में
तुमसे कैसे
अपने दु:ख बाँटूँ !
घोर अँधेरा
पथ है अनजाना
बोलो कैसे मैं
दर्दीले पल काटूँ ।
जितने मिले
हमें प्राण से प्यारे
न चाहकर
वे हर बाजी हारे
गहन गुफ़ा
पग-पग है खाई
कैसे इनकी
गहराई पाटूँ !
जो दिखते हैं
महामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
रोती दीवारें
सन्तापों की हिचकी
लाक्षगृह में
घिरे जीवन भर
बूँद-बूँद को
तरस गए तुम
सुने न कोई
सागर -सी गाथा
दूँ प्यार किसे ?
सब पर पहरा
हर द्वारे पे
है सन्नाटा गहरा
कोई न बूझे
जले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ।
-0-
आज की दुनिया का सत्य...
ReplyDeleteजो दिखते हैं
महामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
बहुत अच्छी और सारगर्भित रचना, बधाई.
रोती दीवारें
ReplyDeleteसन्तापों की हिचकी
लाक्षगृह में
घिरे जीवन भर
सत्य को कहती खूबसूरत रचना ....
ReplyDelete♥
आदरणीय रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी
प्रणाम !
दूँ प्यार किसे ?
सब पर पहरा
हर द्वारे पे
है सन्नाटा गहरा
कोई न बूझे
जले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ।
आपका प्रत्येक गीत/नवगीत , हर प्रकार का छंद … मन छू लेता है…
इस रचना के लिए भी साधुवाद!
*महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जो दिखते हैं
ReplyDeleteमहामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
आज जहाँ धन लोभी हो गया है मनुष्य ...ज्ञान कि गठरी बनाये ,चिराग तले अँधेरा ....कितनी गहरी सच्चाई लिख दी अपने ....
बहुत सुंदर रचना ...
शुभकामनायें ....
मन की पीड़ा आप बहे है।
ReplyDeleteकोई न बूझे
ReplyDeleteजले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ।
निर्मल और निष्कपट अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर रचना|
वाह! क्या बात है!
ReplyDeleteइसे भी देखें-
घर का न घाट का
लाक्षगृह में
ReplyDeleteघिरे जीवन भर
भैया जीवन इसके सिवा और है ही क्या कितना सुंदर सोचा है आपने आपका लिखा जब भी पढ़ती हूँ हमेशा कुछ न कुछ सीखती हूँ
सादर
रचना
घोर अँधेरा
ReplyDeleteपथ है अनजाना
बोलो कैसे मैं
दर्दीले पल काटूँ ।
bahut gahan abhivyakti hai in panktiyon men,gahan peeda ,gahan soch bahut2 badhai...
बहुत सरल शब्दों में बहुत ही गहरे भावों को अभिव्यक्त किया है आपने.....हर पंक्ति एक से बढ़ कर एक...मेरा सादर नमन ...!
ReplyDeleteजीवन का हुबहू रूप प्रस्तुत किया है आपने,बेहद करीब-बेहद गहन ....
ReplyDeleteजो दिखते हैं
ReplyDeleteमहामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
कितना सच लिखा है...|
दूँ प्यार किसे ?
सब पर पहरा
हर द्वारे पे
है सन्नाटा गहरा
बहुत भावपूर्ण है...| बहुत बधाई...|
प्रियंका
कोई न बूझे
ReplyDeleteजले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ।
भावपूर्ण सुन्दर रचना
सादर
कृष्णा वर्मा
कोई न बूझे
ReplyDeleteजले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ
जीवन चक्र उसकी मजबूरियां और दर्द का सजीव चित्रण किया है आपने भाईसाहब..............आपकी हर एक रचना से मैं सिखाती हूँ.....
धन्यवाद,
अमिता कौंडल
sundar prastuti
ReplyDeletejab kahta tha pulak nadi ki, sunte rahe taraane .jabse peer kahi hai maine, kahan gaye sab jaane?
ReplyDeleteशानदार चोका
ReplyDeleteगहन भाव लिए हुए है यह चोका,जीवन का कड़वा सच शब्दों में पिरोकर पन्नों पर उतरना तो कोई रामेश्वर जी से सीखे ....
ReplyDeleteकोई न बूझे
जले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ....
और अंतिम पंक्तियाँ जीवन की उस सच्चाई को ब्यान करती हैं जिसका सामना हम सब प्रतिदिन करते हैं |
बहुत बधाई !
हरदीप
कोई न बूझे
ReplyDeleteजले मन की ज्वाला
राह न सूझे
किस -किस पथ के
मैं सब काँटे छाँटूँ ।..........waah bahut sunder .sabhi shandar
hardik badhai
गहन गुफ़ा पग-पग है खाई कैसे इनकी गहराई पाटूँ !
ReplyDeleteअन्तर्मन के सन्नाटों को भेदती शब्दावली इस अभिव्यक्ति की जान है
namaskar himanshu ji
ReplyDeletewaah bahut sunder chokha hai
mujhe samajh me aa gaya . hardik abhar aapka .
बहुत सुंदर कविता..
ReplyDeleteजो दिखते हैं
ReplyDeleteमहामानव ज्ञानी
उनकी लाखों
हैं कपट कहानी
रोती दीवारें
सन्तापों की हिचकी
लाक्षगृह में
घिरे जीवन भर
जीवन के अनुभवों को इतना सुन्दर अभिव्यक्त आप सा संवेदनशील
व्यक्ति ही कर सकता है। बहुत ही सुन्दर कविता ।