रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नेताजी कई दिन से बीमार थे । अस्पताल के कई बड़े डॉक्टर परिचर्या में लगे हुए थे । दवाइयाँ भी बदल-बदलकर दी जा रही थीं। नेताजी की मूर्च्छा फिर भी न टूट पाई । चिन्ता बढ़ती जा रही थी । गण व्याकुल हो उठे । प्रमुख गण को एक उपाय सूझा । वह दौड़ा-दौड़ा एक दूकान पर गया । वहाँ पार्टी के प्रान्तीय अध्यक्ष की कुर्सी मरम्मत के लिए आई थी । वह घण्टे भर के लिए कुर्सी माँग लाया । चार लोगों ने भारी-भरकम नेता जी को कुर्सी पर बिठा दिया । उनकी चेतना लौट आई ।
डॉक्टरों ने राहत की साँस ली ।
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सही उपचार .... नेता जी को बस कुर्सी पर बैठा दो सारी मूर्छा टूट जाएगी :):)
ReplyDeleteajkal sab kursi ki hi to mahima hai... dhardar vyangya..
ReplyDeleteआज के नेताओं पर एक अच्छा व्यंग्य !
ReplyDeleteनेता जी के लिए इस से अच्छा इलाज और क्या होगा । वाह क्या खूब कहा है।
ReplyDeletebahut karara vyang hai aaj ka smy hi kuchh aesa hai
ReplyDeleterachana
आज की राजनीती और राजनेताओं पर सटीक व्यंग्य ....
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग, कुर्सी की खातिर और कुर्सी के लिए क्या क्या नहीं हो जाता, बहुत सटीक कटाक्ष, बधाई.
ReplyDeleteBahut sateek vaygy kiya hai aapne ...
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य भैया जी
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