पथ के साथी

Wednesday, December 14, 2011

आती न पाती(हाइकु)


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1

आती न पाती
हूक -सी उठ तेरी
याद रुलाती

2
घायल पाखी
उड़ा न गगन में
मिलता कैसे

3
सागर पार
बिन कश्ती कठिन
ज्यों इन्तज़ार।

4
जीवन-साँझ
सिमट गई धूप
बची है रात।

6 comments:

  1. आती न पाती
    हूक -सी उठ तेरी
    याद रुलाती...

    Dil ko jhkjhordene vaala haiku...

    सागर पार
    बिन कश्ती कठिन
    ज्यों इन्तज़ार।

    Bahut khubsurat...

    जीवन-साँझ
    सिमट गई धूप
    बची है रात।

    jeevn ko saanjh ke saath jodkar uska pura hi art samjha diya hai chhote se haiku ne...bahut2 badahi..

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  2. बेहतरीन प्रस्तुती.....

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  3. रात बची पर बात बची है..

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  4. जीवन-साँझ
    सिमट गई धूप
    बची है रात। \ सभी हाईकु बहुत कमाल के हैं। मै भी जल्दी ही आती हूँ फिर उसी फार्म मे और भेजती हूँ कुछ हाइकु। शुभकामनायें।

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  5. आदरणीय महोदय
    बहुत सुन्दर हाइकू हैं
    जीवन संध्या का चित्रण्र कमाल का है
    बधाई

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