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छाया:हिमांशु |
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
काँच के घर
बाहर सब देखे
भीतर है क्या
कुछ न दिखाई दे
न दर्द सुनाई दे ।
2
काँच के घर
काँपती थर-थर
चिड़िया सोचे-
हवा तक तरसे
जाऊ कैसे भीतर।
3
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छाया: हिमांशु |
बिछी है द्वार
बर्फ़ की ही चादर
काँच के जैसी
चलना सँभलके
गिरोगे फिसलके ।
काँच के घर के माध्यम से गूढ़ तथ्य कह गयी पोस्ट!
ReplyDeleteबाहर अन्दर, बस काँच का झीना अन्तर..
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ... कांच के घर प्रकृति से दूर कर देते हैं
ReplyDeleteकाँच का घर
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बेहद खूबसूरत !
शुभकामनाएं !
काँच के घर
ReplyDeleteबाहर सब देखे
भीतर है क्या
कुछ न दिखाई दे
न दर्द सुनाई दे ।
Bahut gahrai hai in paktiyon men ...ye aapke ghar ka photo hai na?