रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
दु:ख हैं बड़े
गली-चौराहे पर
युगों से खड़े
2
पुरानी यादें-
सुधियों की पावस
भीगा है मन
3
नम हैं आँखें
बिछुड़ गया कोई
छूकर छाया
4
बेबस डोर
बाँधे से नहीं बँधे
लापता छोर ।
5
भटका मेघ
धरती को तरसे
तभी बरसे
सिसकते मन को
उड़ा पखेरू
7
रड़कें नैन
छिन गई निंदिया
मन का चैन
8
याद तुम्हारी
छल-छल छलकी
बनके आँसू
9
झील उफ़नी
जब बिसरी यादें
घिरीं बरसीं
-0-
दु:ख हैं बड़े
ReplyDeleteगली-चौराहे पर
युगों से खड़े
सही कहा ...
कई बार अपने आस पास देखती हूँ तो
यही एहसास होता है...
पंखों में बाँध
सिसकते मन को
उड़ा पखेरू
मौन हूँ ....
कितने कम शब्दों में
छू गईं दिल को .....
.....
दु:ख हैं बड़े
ReplyDeleteगली-चौराहे पर
युगों से खड़े
दिल को छू गया ये हाईकु। सभी हाईकु बहुत पसंद आये बधाई आपको।
नम हैं आँखें
ReplyDeleteबिछुड़ गया कोई
छूकर छाया
Waah Waah. Poori ki poori Zindagi ka nichod chand lazfon mein. Bahut mubarak Rameshwarji
भाई साहब, यूँ तो आपके सभी हाइकु बहुत सुन्दर मानव जीवन और प्राकृतिक जीवन की कोमल भावाव्यक्तियों से भरपूर लगे' परन्तु पहले ही हाइकु ने जिस प्रकार मन मोहा, वह तो बयान नहीं कर सकता। बहुत सच बात कह दी आपने- 'दुख हैं बड़े/गली चौराहे पर/युगों से खड़े…' तीसरा हाइकु दिल को जैसे छूता हुआ निकल गया… और एक हाइकु में आपने 'रड़कें' शब्द का बहुत सुन्दर उपयोग किया है… आप ऐसे मानक और श्रेष्ट हाइकू प्रस्तुत करके नि:संदेह इस क्षेत्र में फैला धुंधलका साफ़ कर देंगे, ऐसी मेरा मानना है।
ReplyDeleteयों सभी हाइकू अच्छे हैं लेकिन पहला बहुत अच्छा है ।
ReplyDeleteसभी हाइकु सुंदर .....
ReplyDeleteसभी हाइकू एक से बढ़कर एक हैं!
ReplyDeleteसुंदर लगी / हमेशा की तरह / हाइकु सारी ...इसी तरह / लिखते रहे आप/ शुभकामना...
ReplyDeleteबेहतरीन हाइकू……………दिल को छू गये।
ReplyDeleteयूँ तो सभी अनमोल मोती हैं, लेकिन मुझे यह कुछ जादा ही विशिष्ट लगे.
ReplyDeleteयाद तुम्हारी / छल-छल छलकी /बनके आँसू
क्या कहूँ, इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति की प्रशंसा करने लायक शब्द नहीं हैं मेरे पास. याद तुम्हारी छल-छल छलकी.. की लयात्मकता तो बस अद्भुत है.
भटका मेघ /धरती को तरसे /तभी बरसे
मेघ की धरती के लिए तड़प ही तो बूंदे बनकर बरसती है... एकदम अनूठा प्रयोग
पुरानी यादें- /सुधियों की पावस /भीगा है मन
सुधियों की पावस तो बस ऐसी ही होती है जिसमे मन पोर पोर भीगता है, डूबता है
दु:ख हैं बड़े
गली-चौराहे पर
युगों से खड़े
इस स्थायित्व की पीड़ा को जीना और महसूस कर पाना एक अलग सा ही अहसास है.
आद. हिमांशु जी,
ReplyDelete"दु:ख हैं बड़े
गली-चौराहे पर
युगों से खड़े!"
सभी हाइकू जीवन की संवेदना को बड़े ही प्रभावी ढंग से मुखरित कर रहे हैं !
शिल्प का कसाव भावों की सम्प्रेषणता को प्राणवान कर रहा है !
आभार!
bahut sunder , iska to kahna hi kya -
ReplyDeleteदु:ख हैं बड़े
गली-चौराहे पर
युगों से खड़े
sahityasurbhi.blogspot.com
असीम वेदना से भरे मर्मस्पर्शी कोमल एहसास .
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,गहरे अर्थ
ReplyDeleteअतिसुन्दर...भावपूर्ण...कौन से शब्द ढूँढू अपनी बात कहने के लिए...। शब्दों के जादूगर तो आप हैं...।
ReplyDeleteआज तक धरती मेघ को तरसती थी, पर मेघ की तरसन से आपने अनोखा-अभिनव आनन्द दे दिया...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका
Respected Sir,
ReplyDeleteAbhi aapke haiku parhe. Sabhi haiku itne achchey hain, ki unki tareef mein kuch likhne ke liye hamare paas shabd hi nahi hain. Aap ko bahut bahut badhai.
Mumtaz and T.H.Khan
शब्दों के चित्रकार ने फिर से जादू किया....कितनी खूबसूरती से शब्दों की माला बनाई है
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव...
सभी हाइकु एक से बढ़कर एक हैं!
झील उफ़नी/जब बिसरी यादें/घिरीं बरसीं
मन को कितनी खूबसूरती से दिखाया गया है !
नम हैं आँखें
ReplyDeleteबिछुड़ गया कोई
छूकर छाया
याद तुम्हारी
छल-छल छलकी
बनके आँसू
झील उफ़नी
जब बिसरी यादें
घिरीं बरसीं
udasi par isse ache haiku koi likh sakta hai to dil se aavaj aati hai....nahi kabhi nahi...
sabhi haaiku behtareen hain, bhaav ki bahut gahri abhivyakti, badhaai bhaaisahab.
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