उमेश महादोषी ||एक ||
मैकू देखे आकाश
पेट पर पड़ी लातों से
ये क्या निकलता है...!
||दो||
आँखों में फूटती जो
भूख भी होती कुछ कम
आँखों झरी रुलाई!
||तीन||
खाई में डूबी आँखें
देखतीं फिसलते पैर
चीख फँसी गले में
||चार||
दूसरी औरत है
धर्म निभाती पहली का
ताने खा, पीती आँसू !
-0-
सभी त्रिपदियाँ जीवंत लगीं....
ReplyDeleteसभी त्रिपदियाँ बहुत अच्छी लगी। उमेश महादोशी जी को बधाई। भाई साहिब किसी दिन त्रिपदिओं का व्याकरण भी समझाईयेगा।
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