बहू की विवशता
-पंचरंगी चीरा बाँध कै
बीरण मेरा घेरों में बैठ्या री
हेरी सासू झटपट दे दे न दूध ,
बीरण मेरा निरणों बासी री।
- हे बहू इतनी क्यों तारै तावळ
जलै न ल्हासी दे दो री ।
पंचरंगी चीरा…
-हे री तेरी हाण्डी मैं मारूँ ईंट
भूरी पै चोर लगा दूँ री ।
पंचरंगी चीरा……
- हेरी बहू ऐसे न बोल्लै बोल
- भेज कै नाँव भी नी लेणे की
पंचरंगी चीरा……
- हे री मैं नौं भाइयों की बाहण
- भतीजे मेरे बहुत घणै
पंचरंगी चीरा……
- हे री वे देंगी अपनी जूठ
- जली का पेट भरैगा री
पंचरंगी चीरा……
No comments:
Post a Comment