पथ के साथी

Monday, May 12, 2025

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  1-तुम धरा थीं/  शशि पाधा


तुम धरा थीं

तेरे आँचल से बँधी थी

सारी प्रकृति

तुम आकाश थीं

तेरे आँगन में खेलते थे

सारे ग्रह-नक्षत्र

तुम सागर थीं

तुममें समाहित थी

सारी नदियाँ

तुम ब्रह्मांड थीं

तुझमें ही लीन थीं

हवाएँ–दिशाएँ

और ...

इस सब से

अनभिज्ञ-अस्पृह

तुम...केवल तुम थी

तुम ... माँ थीं

-0-

2-एक थी यशोधरा /  प्रीति अग्रवाल 

नीरव रात्रि
एकांत में निकले
खोजने सत्य
सिद्धार्थ महल से
न कोई विदा
यशोधरा से माँगी
न कोई संकेत
जिससे जान पाती
नन्हा राहुल
छोड़ मैया सहारे
यशोधरा के
मन में निरन्तर
यही टीसता
क्या मैं बनती बाधा
साथ न देती
क्या यही सोचकर
निकल पड़े
वे बिना कहे-सुने
क्यों मन मेरा
पहचान न पाए
यही मनाऊँ
पाएँ ज्ञान प्रकाश
मोक्ष का मार्ग
जनहित दिखाएं
हूँ बड़भागी
उनकी अर्धांगिनी
प्रेम पात्र बनी मैं!!
-o-

5 comments:

  1. वाह!
    बहुत सुंदर...👏🏻👏🏻

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  2. तुम धरा थीं, एक थी यशोधरा दोनों बहुत सुंदर भावपूर्ण कविताएँ । शशि पाधा और प्रीति अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर

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  3. दोनों कविताएँ बहुत सुंदर और भावपूर्ण। शशि पाधा जी एवं प्रीति जी को हार्दिक बधाइयाँ।

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  4. वाह भावपूर्ण रचनाएँ!!

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  5. शशि जी की माँ पर सुंदर भावों से ओत प्रोत कविता और प्रीति की भगवान बुद्ध पर रची सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि “

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