1-तुम धरा थीं/ शशि पाधा
तुम धरा थीं
तेरे आँचल से बँधी थी
सारी प्रकृति
तुम आकाश थीं
तेरे आँगन में खेलते थे
सारे ग्रह-नक्षत्र
तुम सागर थीं
तुममें समाहित थी
सारी नदियाँ
तुम ब्रह्मांड थीं
तुझमें ही लीन थीं
हवाएँ–दिशाएँ
और ...
इस सब से
अनभिज्ञ-अस्पृह
तुम...केवल तुम थी
तुम ... माँ थीं
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2-एक थी यशोधरा / प्रीति अग्रवाल
नीरव रात्रिएकांत में निकले
खोजने सत्य
सिद्धार्थ महल से
न कोई विदा
यशोधरा से माँगी
न कोई संकेत
जिससे जान पाती
नन्हा राहुल
छोड़ मैया सहारे
यशोधरा के
मन में निरन्तर
यही टीसता
क्या मैं बनती बाधा
साथ न देती
क्या यही सोचकर
निकल पड़े
वे बिना कहे-सुने
क्यों मन मेरा
पहचान न पाए
यही मनाऊँ
पाएँ ज्ञान प्रकाश
मोक्ष का मार्ग
जनहित दिखाएं
हूँ बड़भागी
उनकी अर्धांगिनी
प्रेम पात्र बनी मैं!!
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वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर...👏🏻👏🏻
तुम धरा थीं, एक थी यशोधरा दोनों बहुत सुंदर भावपूर्ण कविताएँ । शशि पाधा और प्रीति अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteदोनों कविताएँ बहुत सुंदर और भावपूर्ण। शशि पाधा जी एवं प्रीति जी को हार्दिक बधाइयाँ।
ReplyDeleteवाह भावपूर्ण रचनाएँ!!
ReplyDeleteशशि जी की माँ पर सुंदर भावों से ओत प्रोत कविता और प्रीति की भगवान बुद्ध पर रची सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि “
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