रणभेरी
डॉ. सुरंगमा यादव
पल में क्या से क्या हो गया, समझ नहीं ये कुछ आया
खुशी रुदन में बदल गई थी, खूनी
मंजर था छाया।
अभी सजा सिंदूर माँग में, मेंहदी का रंग गहराया
खुशियाँ सारी ढेर कर गया क्षण
में आतंकी साया।
कायरता भी शर्मसार है, ऐसा कत्लेआम
किया
सिंदूरी सपनों को पल में,अर्थी पर है सुला
दिया।
माँ का सूना आँचल कहता, ‘लाल कहाँ तुम चले
गए
वापस आए नहीं दुबारा किस पापी से छले
गए ।
नाम धर्म का लेकर अपने धर्म को भी वे लजाते हैं ।
खाने के लाले हैं घर में, खैरात माँग इतराते
हैं।
धर्म नहीं है उनको प्यारा, नफ़रत, हिंसा प्यारी हैं।
अपनी कौमों के माथे पर लिखते वे गद्दारी हैं ।
दहशतगर्दी फैलाना ही, धर्म जिन्होंने माना
है
इंसानी जानों की कीमत, उनको क्या
समझाना है।
शृगालों ने खुद ही आकर शेरों को ललकारा है।
उनका दण्डित करना ही अब पहला धर्म हमारा है।
प्रेम- अहिंसा धर्म हमारा, तब तक हमें सुहाता है
शत्रु हमारी ओर न जब तक अपनी आँख उठाता है ।
दुष्ट- दलन के लिए कृष्ण को चक्र चलाना पड़ता
है
मर्यादा पुरुषोत्तम को भी धनुष उठाना पड़ता है।
जिसको प्रेम- शांति की भाषा, अब तक कभी नहीं भाई
उसे शस्त्र की भाषा में समझाने की अब बेला आई ।
जिसे ‘सीजफायर’ में भी बस ‘फायर’ याद ही रहता है
उसके इरादे ‘सीज़’ करें हम, बच्चा-
बच्चा कहता है।
धोखे का ही रक्त रगों में जिसकी बहता रहता
है
उसकी क्रूर कुचालों की इतिहास सच्चाई कहता है।
सेना की रणभेरी ने अब ऐसा राग सुनाया है
दहशत फैलाने वाला ही, खुद दहशत में आया है ।
केवल ये ‘सिंदूर’ नहीं है, शिव का ताण्डव नर्तन है
वे भी बचा नहीं पाएँगे,जिनका मिला समर्थन है ।
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मन भर आया। सार्थक सृजन के लिए बहुत बधाई
ReplyDeleteसमकालीन अभिव्यक्ति-सिंदूर के केंद्रीय भाव में सुंदर रचना, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना। बधाई । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआदरणीया डॉ. सुरंगमा जी🌷🙏🏽
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण। सिंदूर स्वरूपी सुदर्शन चक्र से ही समापन होगा अब शकुनि षड्यंत्रों का। ज़मीर को ज़िंदा करने सद्प्रयास हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं :
- इस दिये की लौ में इक सूरज को ढाला जाएगा
- देख लेना दूर तक इसका उजाला जाएगा
महत्वपूर्ण एवं मार्मिक अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसुरंगमा जी की सामयिक कविता ने मन विचलित कर दिया है । बहुत शर्मनाक घटना हुई है । । इस रचना पर बधाई स्वीकारें । सविता अग्रवाल “सवि “
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