पथ के साथी

Wednesday, March 20, 2024

1405

 

सिलसिला

डॉ. सुरंगमा यादव

 

मुझे अकेला पाकर

अकसर

तुम आ जाते हो

मेरे पास

फिर शुरू होता है

तुम्हारी बातों से निकलती

बातों का सिलसिला

भाने लगता है मुझे

ये अकेलापन

पहले भी नहीं

और अब भी नहीं

ऊबती ही नहीं

डूबती ही जाती हूँ

तुम्हारी बातों की गहराई में

ढूँढ लाती हूँ कई मनके

दुनिया से छुपके

सहसा चौक जाती हूँ !

किसी के पुकारने पर

गड्ड-मड्ड हो जाता है

मन की झील में उभरा हुआ

तुम्हारा अक्स

फिर शुरू होता है

तुम्हें सोचने का सिलसिला।

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7 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

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  2. बहुत सुंदर कविता, हार्दिक शुभकामनाऍं ।

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    1. बहुत सुंदर कविता।
      हार्दिक बधाई आदरणीया

      सादर

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति सुरंगमा जी। हार्दिक बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”

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  4. बहुत सुंदर कविता...हार्दिक बधाई सुरंगमा जी।

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  5. सुंदर कविता!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. बहुत सुन्दर रचना

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