1-वे हुरियारे दिन.../ डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
मन पाँखी
फिर ढूँढ रहा है
वे हुरियारे
दिन।
अम्मा की
गुझियाँ
भाभी की
सरस ठिठोली, होली
शोर मचाती
गली गली में
हुड़दंगों
की टोली
कोई नर्म
हथेली
हमको रंग
लगा यूँ बोली
भूल न जाना
रंग भरे ये
प्यारे-प्यारे
दिन।
रूठा- रूठी
झगड़े लफड़े
होली में
जलते थे
फगुआ,चैता रसिया सुन-सुन
सबके मन
खिलते थे
जुम्मन
मियाँ गुलाल लगाते
गले सभी
मिलते थे
सपनों जैसे
लगते हैं अब
वे उजियारे
दिन।
गाँव गली
के छोरे-छोरी
खूब धमाल
मचाते
ढोल नगाड़ों
की ढम-ढम पर
ठुमके सभी
लगाते
इतने रंग
उड़ाते नभ में
इंद्रधनुष
बन जाते
अल्हड़ मस्त
अदाओं वाले
वे फगुआरे
दिन।
-0-
2-रश्मि
विभा त्रिपाठी
ऋतुपति
मुझको इतना वर दे
अबकी फागुन
ऐसा कर दे
कुछ टेसू
और
मुझे
अपना कुछ
रंग अम्बर दे
धरती अपनी
हरीतिमा से
चुनकर हरा
रंग
ले जाए,
उनके द्वार
पर धर दे
चटख लाल, हरा, पीला,
गुलाबी-
ये एक-
एक रंग
मेरे प्रिय
के जीवन में
इन्द्रधनुष
के सब रंग भर दे।
-0-
‘वे हुरियारे दिन’ कविता ने बीते दिनों की होली की याद दिला दी। बेहतरीन कविता । शिवाजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई ॥
ReplyDeleteरश्मि जी को सबके जीवन में ख़ुशियों के रंग भर देने की कामना करती सुंदर कविता के लिए बहुत बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
हुरियारे दिन में होली के बचपन के सुन्दर दिन स्मरण हो आए । शिवा जी श्रीवास्तव को हार्दिक बधाई । रश्मि जी की कविता में इंद्रधनुष के रंग जीवन में खुशियों के रूप में भर लेने की मनोकामना है । रश्मि जी को हार्दिक बधाई । फागोत्सव की शुभेच्छा ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर एवं मनमोहक सृजन 🌹🙏🏻
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय शिवजी एवं रश्मि विभा जी ... दोनों की कविताएँ बहुत सुंदर!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
आप दोनों की कविता बहुत सुन्दर. आप दोनों को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सरस रचनाएँ...आप दोनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय शिव जी श्रीवास्तव जी की बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई 🌷💐🌹
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आदरणीय गुरुवर का हार्दिक आभार।
आप आत्मीय जन की टिप्पणी का बहुत- बहुत आभार।
सादर
शिवजी भैया की सुंदर कविता, बचपन के गलियारे घुमा लायी, वहीं रश्मि जी की कविता भी अति मनभावन !!
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