जीवन का पहिया ( लघु व्यंग्य)
कोरोना
की तरह वह चुपचाप कहीं भी घुस जाएगा, गज़ब का है यह प्राणी। यह
सुबह नहा धोकर पूजा करता है। मनोयोग से आरती करता है। सादा भोजन करके अपने ऑफिस के
लिए निकलता है।
ऑफिस
में पहुँचकर कुर्सी पर बैठने से पहले कुर्सी को नमन करता है, टेबिल
को छूकर माथा झुकाता है।
दिनभर सिर झुकाकर अपने काम में लगा रहता है। चुपचाप जो कमाई होती है,उसका आधा हिस्सा अपनी जेब में रखकर,आधा अपने अफसर को
भेंट कर देता है।
रात में खाना खाने के बाद पहले धार्मिक
सीरियल देखता है। अरुचि होते ही कोई अपराध सीरियल देखने लगता है। इससे भी ऊब जाएँ,
तो ज़ुबान पर गिलोय के रस का लेप करके बोलना शुरू कर देता है। सोने
से पहले सभी निकटवर्ती साथियों की खबर लेता है। जब थक जाता है तो सोने चला जाता
है।
नींद
में बुरे- बुरे सपने आते हैं, तो पत्नी को कोसता है-'मुझे बुरे सपने क्यों आते हैं,बताओ!'-झकझोरकर पूछता है।
हाँफते- हाँफते थककर फिर सो जाता है। सुबह
भगवान का नाम लेकर अँगड़ाई तोड़ता है और उबासी लेकर फिर जग जाता है,आज की दिनचर्या के लिए।
-0- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत ही बढ़िया लघु व्यंग्य। हार्दिक बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteभैया बहुत ख़ूब लिखा है ।👏
ReplyDeleteरचना
ReplyDeleteवाह क्या बात है,आम आदमी के जीवन की दिनचर्या के माध्यम से बढ़िया कटाक्ष।प्रणाम भाई साहब।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।बधाई भैया।
ReplyDeleteवाह! बढ़िया व्यंग्य
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबहुत तीक्ष्ण कटाक्ष है आदरणीय भैया। झकझोरती, प्रेरित करती सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteयथार्थ !! सटीक अभिव्यक्ति आदरणीय भाई साहब, धन्यवाद!!
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य, तदनुकूल शीर्षक
ReplyDeleteवाह बढ़िया दिनचर्या है । सुंदर लघु व्यंग्य है भाई कामबोज जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमाफ़ करिए नाम लिखना रह गया सविता अग्रवाल “सवि”
ReplyDeleteइतना सुंदर एवं उत्कृष्ट लेखन... निःशब्द हूँ...🙏
ReplyDeleteसर आपका लेखन शिल्प अद्वितीय है 🙏
अति सुंदर सटीक लघु व्यंग्य। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर धारदार मारक व्यंग्य
ReplyDeleteमंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
नींद में बुरे- बुरे सपने आते हैं, तो पत्नी को कोसता है-'मुझे बुरे सपने क्यों आते हैं,बताओ!'-झकझोरकर पूछता है। हाँफते- हाँफते थककर फिर सो जाता है। सुबह भगवान का नाम लेकर अँगड़ाई तोड़ता है और उबासी लेकर फिर जग जाता है,आज की दिनचर्या के लिए।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब चित्र खींचा है
आज के जीवन पर बहुत बढ़िया कटाक्ष. बधाई भैया.
ReplyDeleteबहुत करारा व्यंग्य , हार्दिक बधाई आदरणीय काम्बोज जी को
ReplyDelete