रश्मि 'लहर'
अचानक
एक खिलखिलाती स्मृति
पूरे दिवस पर छाने लगी!
यथार्थ की व्यथाओं को
दुलराने लगी।
मन संशय में रहा..
अश्रुबिंदु उलझने लगे!
असंख्य पुराने पल
तुम्हारी बाहों से गुजरने लगे।
एक जीवन्त मिलन
अनुभूति की जकड़न से
बाहर आने का
असंयत प्रयास करने लगा।
जाने क्यों
विकल वर्तमान का
कठोर चेहरा
अतीत के मुलायम वक्ष को
खोजने लगा।
चिंतन के अबोध अधरों को
थरथराने से
रोकने लगा।
वो प्रकंपित प्रथम मिलन की
अजनबी ऑंखें!
वो असहज- सी
अतृप्त बातें!
कितने सुव्यवस्थित ढंग से
जीवन को सँजो लेती हैं न?
पर
जब-तब लुढ़का देती हैं
समय के कपोल पर
इक्का-दुक्का आँसू!
उफ़!
ये प्रेम भी न..
कमजोर करता जाता है
विस्मरण की अजूबी डोर को!
दृढ़ करता जाता है
अनाम बन्धन के
हर छोर को!
सुनो!
एक अपूर्ण!
रहस्यमय सा..
अपरिचित स्वप्न!
क्या तुमने भी देखा है?
क्या अपने बँधे-बँधे हाथों में
दुबारा मिलने की
कोई अटूट रेखा है?
-0-
रश्मि 'लहर'
इक्षुपुरी कॉलोनी, लखनऊ
उत्तर प्रदेश
मोबाइल -9794473806
वाह! अति सुन्दर अभिव्यक्ति! बधाई रश्मि जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता, हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन 🌹🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्यारी सी कविता के लिए बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बधाई रश्मि.
ReplyDeleteक्या अपने बँधे-बँधे हाथों में
ReplyDeleteदुबारा मिलने की
कोई अटूट रेखा है?
वाह ! बहुत सुंदर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई रश्मि जी!
ReplyDeleteवाह बहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...बहुत बधाई रश्मि।
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