पथ के साथी

Thursday, August 3, 2023

1343-मेघा भेद न खोल दें

 

जनक छंद - विभा रश्मि  

1

मेघा भेद न खोल दें ।

देस - डगर को नापकर 

भीगे अश्रु ना मोल दें ।

2

मनवा का दुखड़ा सुना ।

सुलझेंगी गाँठें छ्ली 

जिनको तूने ही चुना ।

3

बरखा जल ने भर दि

खुश है धरती भीगती 

पत्तों के दिल तर कि

4

चिड़िया डैने मारती ।

बौछारों में उड़ चली

चिकलों पर सब वारती ।  

5

बूँदों की इक माल हूँ ।

मैं जोहड़ में जा मिली

लहरों की लय - ताल हूँ ।

6

हरियल शुक रस घोल दे ।

मीठी वाणी कर्ण में  

नेहिल सा अब बोल दे । 

13 comments:

  1. कोमल भावों की अभिव्यक्ति करते सुंदर जनक छंद।बधाई रश्मि विभा जी।

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    1. आपसे ही सीखा । आभार आपका उमेश भाई ।

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  3. प्रकृति को चित्रित करते सुंदर छंद। बधाई रश्मि जी।

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    1. दिल से आभार सुशीला राणा जी आपका ।

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  4. वाह! बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई विभा जी.

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  5. बहुत सुंदर छंद । हार्दिक बधाई विभा

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  6. रेणु चन्द्रा माथुर

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    1. हार्दिक आभार रेणु जी आपका ।

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  7. अच्छे और प्रभावशाली जनक छंद हैं आपके. बहुत बहुत बधाई.

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    1. आभार आपका पवन शर्मा जी

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