जनक छंद - विभा रश्मि
1
मेघा भेद न खोल दें ।
देस - डगर को नापकर
भीगे अश्रु ना मोल दें ।
2
मनवा का दुखड़ा सुना ।
सुलझेंगी गाँठें छ्ली
जिनको
तूने ही चुना ।
3
बरखा जल ने भर दिए ।
खुश है धरती भीगती
पत्तों के दिल तर किए ।
4
चिड़िया डैने मारती ।
बौछारों में उड़ चली
चिकलों पर सब वारती ।
5
बूँदों की इक माल हूँ ।
मैं जोहड़ में जा मिली
लहरों की लय - ताल हूँ ।
6
हरियल शुक रस घोल दे ।
मीठी वाणी कर्ण में
नेहिल सा अब बोल दे ।
कोमल भावों की अभिव्यक्ति करते सुंदर जनक छंद।बधाई रश्मि विभा जी।
ReplyDeleteआभार शिव जी आपका
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपसे ही सीखा । आभार आपका उमेश भाई ।
Deleteप्रकृति को चित्रित करते सुंदर छंद। बधाई रश्मि जी।
ReplyDeleteदिल से आभार सुशीला राणा जी आपका ।
Deleteवाह! बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई विभा जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर छंद । हार्दिक बधाई विभा
ReplyDeleteदिली आभार आपका ।
Deleteरेणु चन्द्रा माथुर
ReplyDeleteहार्दिक आभार रेणु जी आपका ।
Deleteअच्छे और प्रभावशाली जनक छंद हैं आपके. बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteआभार आपका पवन शर्मा जी
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