पथ के साथी

Wednesday, August 2, 2023

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[जनक छन्द दोहे के प्रथम चरण की तेरह मात्राओं  की लय के वैज्ञानिक ऽ ऽ ऽ, ऽ, ऽI ऽ विभाजन पर आधारित ‘सम मात्रिक छन्द’ है, अर्थात् जनक छन्द के तीनों चरणों में 13-13-13 मात्राएँ होती हैं। एक गुरु ऽ के स्थान पर दो लघु I I का प्रयोग(ऽ या II) किया जा सकता है। पहले और तीसरे चरण तुकान्त होते हैं। तीनों चरण भी तुकान्त हों तो कोई दोष नहीं। अन्त में लघु-गुरु( I ऽ) की अनिवार्यता है।-डॉ ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’]

जनक छंद


उमेश महादोषी

1.

बोल जमूरे! बोल ना!

दिखला कोई खेल तू

जीवन में रस घोल ना!

2.

तू नदिया की धार-सी।

मैं पत्थर-सा बह रहा

तू कल-कल करताल-सी।

3.

राजाजी क्यों ठंड में।

आज गली-गली

हार ग-से जंग में!

4.

साथ-साथ तेरे बहा।

तू तो गंगाजल बना

पत्थर मैं पत्थर रहा!

5.

पुष्पों में भी आग है।

और आग में बस रहा

देवों का अनुराग है।

6.

डाँट रहा सूरज उसे।

शीत लहर काँपे खड़ी

देख-देख धरती हँसे।

7.

कैसी है ये वेदना!

आँखों में आँसू नहीं,

ना ही तन में चेतना।

8.

संघर्ष यह थमे नहीं।

अन्तस में जो जल चुकी,

वो ज्योति अब बुझे नहीं।

9.

सर्पीली पगडंडियाँ।

हरियाते अरु खेत वे,

निगल गईं ये मंडियाँ।

10.

जब-जब उफनी है नदी।

जल में घुल बहती हुई,

पर्वत की पीड़ा मिली।

11.

प्रश्न बड़े बेताल के।

उत्तर देता है समय

सोच-समझ समकाल के।

12.

बँटा देश, जीवन बँटा।

देख जमूरे! देख ना!

बँटी बँटी है हर छटा।

 

-0-121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001,उ.प्र./मो. 09458929004

17 comments:

  1. जनक छंद की व्याकरण के दृष्टिकोण से मैंने इन्हें नहीं पढ़ा, बल्कि काव्य मानकर पढ़ा, बहुत ही सुन्दर शिल्प लगा, हो सकता जनक छंद बहुत पुरानी विधा हो परन्तु मैंने पहली बार पढ़ा, कई बार पढ़ा, हर बार नये आनन्द की अनुभूति हुई ।डॉ उमेश महादोषी , डॉ ओमप्रकाश भाटिया 'अराज 'और सहज साहित्य को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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    1. हार्दिक आभार।

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  3. बहुत सुंदर सरस सृजन। हार्दिक बधाई उमेश महादोषी जी। सुदर्शन रत्नाकर

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  4. इतनी सुन्दर , लयात्मक "जनक छंद" काव्य रचना । पहली बार पढ़ने को मिली । हार्दिक बधाई उमेश महादोषी भाई । पढ़कर आनंद आया ।
    विभा रश्मि

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  5. इस विधा के बारे में पहली बार जानकारी मिली. बहुत सुन्दर लिखा है उमेश महादोषी जी ने. हार्दिक बधाई आपको.

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  6. अरे वाह ! कितनी सुंदर रचनाएँ , इस विधा का नाम पहली बार जाना । बहुत बहुत बधाई ।
    शशि पाधा

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  7. प्रश्न बड़े बेताल के...

    अति सुंदर रचनाएँ! नई विधा की जानकारी प्राप्त हुई, धन्यवाद आदरणीय!

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  8. बढ़िया छंद और बहुत ही सुंदर रचनाएँ, एक से बढ़कर एक...
    विशेषतः -
    साथ-साथ तेरे बहा।
    तू तो गंगाजल बना
    पत्थर मैं पत्थर रहा!
    एवं
    कैसी है ये वेदना!
    आँखों में आँसू नहीं,
    ना ही तन में चेतना।

    बहुत ही बेहतरीन लगे

    हार्दिक बधाई उमेश जी

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    1. हार्दिक आभार।
      - उमेश महादोषी

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  9. सभी छंद बहुत ही सुंदर।

    कैसी है ये वेदना!
    आँखों में आँसू नहीं,
    ना ही तन में चेतना।

    बधाई आदरणीय

    दर्द की पराकाष्ठा का अत्यंत प्रभावशाली चित्रण। बधाई

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